शब्दों का चयन (क्या, क्यों , कैसे )
ऐसे शब्द होते है जो अपने मक़सद को पकड़े होते हैं जिसे ना बोला जाए तो बात मुक़म्मल नही होती और बात का मक़सद भी पता नही चलता पाता हैं यह शब्द कुछ इसी ही तरह है
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ख़ाने क़ाबा की पहली तस्वीर |
हम इसे हर तरह से ज़िन्दगी में इस्तेमाल कर सकते ,पर मेरा मक़सद इस्लाम मे आये आख़री नबी हज़रत मुहम्मद (अलैहिस्सलाम) के मक़सदों में क्या ज़रूरियात रही इन शब्दों की, इस बारे में कुछ बताने की कोशिश करूंगा
जैसा हम सब को पता हैं के 1400 साल पहले अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) को ( 610 - 11 ई० ) में नुबवत का ज़हूर हुआ था उन्हें यह बताया गया था के इस कौम को राहे रास्ते पर लाने का काम अंजाम देना हैं , और आप फौरन उठ खड़े हुए और दुनिया को बदल डाला
जब अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) ने कुरैश के लोगों को इस्लाम की दावत देनी शुरू की तो इन तीन शब्दों की ज़रूरत बहुत ज़्यादा थी जिससे बात को समझाया जा सके।
क्या :-
जब अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) लोगों को इस्लाम की दावत देते वक़्त बोलते थे क्या तुम्हें नही पता के तुम्हारा रब कौन है और तुम्हें अपने रब की ही बंदगी करनी चाहिए इबादत के लायक़ तो अल्लाह ही है जिससे तुम दुनिया और आख़िरत में भी कामियाबी पा सके।
क्यों :-
साथ ही साथ यह भी बोलते थे के तुम क्यों इन बुतों को पूजते हो ना तो यह तुम्हारी कोई मदद कर सकते है ना तुम्हे ना ही सुन सकते है ना ही देख सकते है तो तुम क्यों उस रब की इबादत नही करते हो जो तुम्हे भूख के वक़्त खाना खिलाता है प्यास के वक़्त पानी पिलाता है और जब तुम उसे पुकारते हो तो वो तुम्हे सुनता भी हैं और देखता भी है तो तुम उस रब की बन्दगी क्यों नही करते हो
कैसे :-
लोगों को यह भी बताते थे के तुम कैसे फलाह (कामियाबी) पा सकते हो जब तक के तुम इन बातों को ना मानो तुम कैसे जन्नत में अपनी जगह बना सकते हो, जब तक के तुम लोग उस रब के दीन में पूरे के पूरे दाख़िल ना हो जाओ और जब तक तुम गूनहा करने से बाज़ ना आ जाओ तब तक तुम कैसे जन्नत पा सकते हो
नोट :-
इन शब्दों को याद दिलाने का मक़सद यही था के हम उन अज़ीम पैग़म्बर की पैरवी करे और उनकी बात माने जो उन्होंने हमें बताई है और उस मक़सद को लेकर चले जिसे अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) लेकर उठे थे और दुनियां में हक़ को हक़ कर दिया था बातिल को बातिल कर दिया था।
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