हज़रत अम्मार बिन यासिर (रज़ि०) की रचनात्मक तस्वीर |
हज़रत अम्मार बिन यासिर (रज़ि०) अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) के जाँ निसार सहाबा में से एक थे. यह मक्का के शुरूआती दौर में ही अपने माँ बाप के साथ ईमान ले आए थे. वो उस वक़्त ईमान लाए थे जब इस्लाम में दाख़िल होना, मौत के मुँह में दाख़िल होने जैसा था. इसी वजह से इनको और इनके माँ बाप को मुसलमान बनने के एवज़ में बहुत तकलीफ़ें सहनी पड़ीं. इनके बाप हज़रत यासिर (रज़ि०) और इनकी माँ हज़रत सुमय्या (रज़ि०) दोनों, अल्लाह की राह में शहीद होने वाले पहले सहाबी व सहाबिया थे. अबू जहल ने मक्का में इनकी आँखों के सामने ही इनके वालिदैन को बड़ी बेरहमी से क़त्ल कर दिया था.
अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) के साथ हज़रत अम्मार बिन यासिर (रज़ि०) ज़िंदगी भर कुफ़्फ़ार के ख़िलाफ़ जंग लड़ते रहे. फिर ख़ुलफ़ाए राशिदीन के साथ दीन की ख़िदमात अंजाम देते रहे और ज़िंदगी का आख़िरी दौर हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) का साथ देते हुए गुज़ार दिया और जंगे सिफ़्फ़ीन में हज़रत मुआविया (रज़ि०) के ख़िलाफ़ हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) की तरफ़ से लड़ते हुए 93 साल की उम्र में शहीद हो गए.
अल्लाह हज़रत अम्मार बिन यासिर (रज़ि०) के दरजात बुलंद फ़रमाए - आमीन
हादीस की किताबों में हज़रत अम्मार बिन यासिर (रज़ि०) के बेशुमार फ़ज़ाएल बयान हुए हैं.
एक जगह हज़रत अम्मार बिन यासिर (रज़ि०) की शान में अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया
"अम्मार की ज़ुबान को अल्लाह ने शैतान से महफ़ूज़ कर दिया है"
(बुख़ारी - 3743)
अल्लाह के रसूल अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया अम्मार सर के बाल से लेकर पाओ के नाख़ून तक ईमान से लभलभ भरा हुआ है।
(सुन्नन निसाई 5010)
अम्मार बिन यासिर (रज़ि०) ऐसे सहाबी थे जिनके लिए अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) ने इनकी ज़िंदगी में ही इनकी शहादत की पेशनगोई फ़रमा दी थी.
"अफ़सोस! अम्मार को एक बाग़ी गिरोह क़त्ल करेगा , अम्मार जन्नत की तरफ बुलाएगा और बाग़ी गिरोह दोज़ख़ की तरफ बोला रही होगी
(बुख़ारी - 2812)
"अम्मार का क़ातिल और उसका माल लूटने वाला जहन्नम में है"
(मुसनद अहमद)
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