रोम के बादशाह हिरकल के कुछ अहम सवाल ?
बादशाह हिरकल |
शाम ( रोम ) के बादशाह हिरकल ( Hercules ) ईसाई था । इंजील की भविष्यवाणियों और गवाहियों के मुताबिक़ एक नए पैग़म्बर के आने के इन्तिज़ार में था ।
जब उसे मालूम हुआ कि अरब के मक्का शहर में हज़रत मुहम्मद ( सल्ल ०) ने पैग़म्बर होने का दावा किया है तो उसे यह जानने की ख़ाहिश हुई कि इंजील की भविष्यवाणियों के अनुसार पैग़म्बर की जो अलामतें ( लक्षण ) और ख़ासियतें ( विशेषताएँ ) होती हैं , वे हज़रत मुहम्मद ( सल्ल ॰ ) में मौजूद हैं या नहीं ? इसी दौरान मक्का के कुछ कारोबारी लोगों से हिरक़ल की मुलाक़ात हुई । उन लोगों में कुरैश के सरदार हज़रत अबू - सुफ़ियान (रज़ि०) भी थे ।
हज़रत अबू - सुफ़ियान (रज़ि ०) उस वक्त तक हज़रत मुहम्मद ( सल्ल . ) पर ईमान नहीं लाये थे । शाम के बादशाह हिरक़ल ने उनसे जो बात की उसे खुद हज़रत अबू - सुफ़ियान (रज़ि ०) ने इस तरह बयान किया है शाम के बादशाह हिरक़ल ने मुझे अपने दरबार में बुलाया।
हिरक़ल के सवाल
हिरकल ने सवाल किया उस व्यक्ति हज़रत मुहम्मद (सल्ल० ) का ख़ानदान कैसा है ?
मैंने कहा कि वह बहुत ही शरीफ़ ख़ानदान से सम्बन्ध रखता है हिरक़्ल : क्या तुममें से किसी ने इससे पहले पैग़म्बरी का दावा किया था ?
हज़रत अबू - सुफ़ियान (रज़ि०) : नहीं ।
हिरक़्ल : क्या उसके बाप दादाओं में कोई बादशाह गुज़रा है?
हज़रत अबू - सुफ़ियान (रज़ि ): नहीं ।
हिरक़्ल : उसकी पैरवी ( अनुसरण करने वाले बा असर लोग हैं या कमज़ोर ?
हज़रत अबू - सुफ़ियान (रज़ि०): कमज़ोर ।
हिरक़्ल : उसकी पैरवी करनेवालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है या कमी ?
हज़रत अबू - सुफ़ियान (रज़ि ०) : बढ़ोत्तरी हो रही है ।
हिरक़्ल : उसकी पैरवी करनेवालों में कोई ऐसा भी है जो उसके धर्म से नाखुश होकर फिर गया हो ?
हज़रत अबू - सुफ़ियान (रज़ि०): नहीं ।
हिरक़्ल : पैग़म्बरी के दावे से पहले कभी तुमने उसपर झूठ की तोहमत (लांछन ) लगाई थी ?
हज़रत अबू - सुफ़ियान (रज़ि०): नहीं ।
हिरक़्ल : वह वादे को तोड़ता है ?
हज़रत अबू - सुफ़ियान (रज़ि०) : नहीं । अलबत्ता अभी जो उसके साथ सुलह का समझौता हुआ है , उसपर देखेंगे कि वह उसकी पाबन्दी करता है या नहीं । ( इस एक बात के सिवा अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्ल ॰ के बारे में मैं कोई बात भी अपनी तरफ़ से दाख़िल न कर सका । )
हिरक़्ल : क्या तुम्हारी कभी उससे जंग हुई है ?
हज़रत अबू - सुफ़ियान (रज़ि०) : जी हाँ ।
हिरक़्ल : जंग का नतीजा क्या हुआ ?
हज़रत अबू - सुफ़ियान (रज़ि०): जंग में कभी उसका पलड़ा भारी रहा , कभी हमारा ।
हिरक़्ल : वह किस बात की शिक्षा देता है ?
हज़रत अबू - सुफ़ियान (रज़ि०) : वह कहता है कि एक खुदा की उपासना ( इबादत करो और उसके साथ किसी को शरीक ( साझी ) न ठहराओ । बाप - दादाओं की बातें ( अज्ञानता ) छोड़ दो ।
वह हमें नमाज़ पढ़ने , सच बोलने , पाकदामनी ( नेकचलनी ) अपनाने और रिश्ते - नातों के अधिकार अदा करने की शिक्षा देता है ।
इस बातचीत के बाद हिरक़ल ने अपनी सोच से कहा कि अबू सुफ़ियान से कहो कि मैंने तुमसे मुहम्मद (सल्ल०) के ख़ानदान के बारे में पूछा तो तुमने कहा कि वह बहुत ही शरीफ़ ख़ानदान का है ; तो पैग़म्बर हमेशा शरीफ़ ख़ानदानों में से बनाए जाते हैं मैंने पूछा कि क्या इससे पहले तुममें से किसी ने पैग़म्बर होने का दावा किया था तो तुमने जवाब दिया कि नहीं अगर इससे पहले तुममें से किसी ने यह दावा किया होता तो मैं समझता कि यह उसी दावे का असर है
Bahut khoob H M AHMAD BHAI
ReplyDeleteJazakallah Khair
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