ताबूत - ए - सकीना
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TABOOT -E- SAKEENA
ताबूत ए सकीना की रचनात्मक तस्वीर |
ये वाक़िआ जो नीचे बयान किया जा रहा है वो हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम से तक़रीबन एक हज़ार साल पहले का वाक़िआ है।
उस वक़्त बनी - इसराईल पर अमालिका ( क़ौम के लोग ) हावी हो गए थे और उन्होंने इसराईलियों से फ़लस्तीन के अक्सर इलाक़े छीन लिये थे । शमूएल नबी उस ज़माने में बनी इसराईल के बीच हुकूमत कर रह रहे थे , मगर वो बहुत बूढे हो चुके थे , इसलिये बनी इसराईल के सरदारों ने ये ज़रूरत महसूस की कि कोई और आदमी उनका हाकिम हो , जिसके ताबे हो कर वो जंग कर सकें । लेकिन उस वक़्त बनी इसराईल में इस क़द्र जाहिलियत आ चुकी थी और वो
ग़ैर - मुस्लिम क़ौमों के तौर - तरीक़ों से इतने मुतास्सिर हो चुके थे , ख़िलाफ़त और बादशाही का फ़र्क़ उनके ज़हनों से निकल गया था । इसलिये उन्होंने जो दरख़ास्त की वो ख़लीफ़ा मुक़र्रर करने की नहीं थी , बल्कि एक बादशाह मुक़र्रर करने की थी ।
इस वाक़िआ को क़ुरआन में मुक़म्मल तौर पर बयान किया गया हैं जिसको अल्लाह ने इस तरह बयान किया हैं -
क़ुरआन में पूरा वाक़िआ
तुमने उस मामले पर भी ग़ौर किया जो मूसा के बाद बनी-इसराईल के सरदारों को पेश आया था ? उन्होंने अपने नबी से कहा : हमारे लिये एक बादशाह मुक़र्रर कर दो ताकि हम अल्लाह की राह में जंग करें। नबी ने पूछा : कहीं ऐसा तो न होगा कि तुमको लड़ाई का हुक्म दिया जाए और फिर तुम न लड़ो।
वो कहने लगे : भला ये कैसे हो सकता है कि हम अल्लाह की राह में न लड़ें, जबकि हमें अपने घरों से निकाल दिया गया है और हमारे बाल-बच्चे हमसे जुदा कर दिये गए हैं, मगर जब उनको जंग का हुक्म दिया गया तो एक छोटी तादाद के सिवा वो सब पीठ फेर गए, और अल्लाह उनमें से एक-एक ज़ालिम को जानता है।
उनके नबी ने उनसे कहा कि अल्लाह ने तालूत को तुम्हारे लिये बादशाह मुक़र्रर किया है। ये सुनकर वो बोले, “हम पर बादशाह बनने का वो कैसे हक़दार हो गया? उसके मुक़ाबले में बादशाही के हम ज़्यादा हक़दार हैं। वो तो कोई बड़ा मालदार आदमी नहीं है।” नबी ने जवाब दिया, “अल्लाह ने तुम्हारे मुक़ाबले में उसी को चुना है और उसको दिमाग़ी और जिस्मानी दोनों तरह की भरपूर सलाहियतें दी हैं और अल्लाह को इख़्तियार है कि अपना मुल्क़ जिसे चाहे दे, अल्लाह बड़ी समाईवाला है और वो सब कुछ जानता है।”
इसके साथ उनके नबी ने उनको ये भी बताया कि “अल्लाह की तरफ़ से उसके बादशाह मुक़र्रर होने की पहचान ये है कि उसके दौर में वो संदूक़ तुम्हें वापस मिल जाएगा, जिसमें तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम्हारे लिये दिल के इत्मीनान का सामान है, जिसमें मूसा के लोगों और हारून के लोगों की छोड़ी हुई तबर्रुकात [ बरकतवाली चीज़ें] हैं और जिसको इस वक़्त फ़रिश्ते सँभाले हुए हैं। अगर तुम ईमान वाले हो तो ये तुम्हारे लिये बहुत बड़ी निशानी है।
फिर जब तालूत फ़ौज लेकर चला तो उसने कहा, “एक नदी पर अल्लाह की तरफ़ से तुम्हारी आज़माइश होने वाली है। जो उसका पानी पिएगा, वो मेरा साथी नहीं। मेरा साथी सिर्फ़ वो है जो प्यास न बुझाए; हाँ, एक-आध चुल्लू कोई पी ले तो पी ले।” मगर एक छोटे-से गरोह के सिवा उन सबने उस नदी से ख़ूब पानी पिया।
फिर तालूत और उसके साथी मुसलमान नदी पार करके आगे बढ़े तो उन्होंने तालूत से कह दिया कि आज हममें जालूत और उसकी फ़ौजों का मुक़ाबला करने की ताक़त नहीं। लेकिन जो लोग ये समझते थे कि उन्हें एक दिन अल्लाह से मिलना है, उन्होंने कहा, “कई बार ऐसा हुआ है कि बहुत छोटा सा गरोह अल्लाह के हुक्म से एक बड़े गरोह पर छा गया है। अल्लाह सब्र करनेवालों का साथी है।”
और जब वो जालूत और उसकी फ़ौजों के मुक़ाबले पर निकले तो उन्होंने दुआ की, “ऐ हमारे रब ! हमपर सब्र की बारिश कर, हमारे क़दम जमा दे और इस कुफ़्र करनेवाले (दुश्मन) गरोह पर कामयाबी दे।”
आख़िरकार अल्लाह के हुक्म से उन्होंने काफ़िरों को मार भगाया और दाऊद ने जालूत को क़त्ल कर दिया और अल्लाह ने उसे सल्तनत और हिकमत से नवाज़ा और जिन-जिन चीज़ों का चाहा, उसको इल्म दिया – अगर इस तरह अल्लाह इन्सानों के एक गरोह को दूसरे गरोह के ज़रिए से हटाता न रहता तो ज़मीन का निज़ाम बिगड़ जाता। लेकिन दुनिया के लोगों पर अल्लाह की बड़ी मेहरबानी है कि वो इस तरह बिगाड़ को दूर करने का इन्तिज़ाम करता रहता है।
(क़ुरआन : 2 , 246-251)
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