हज़रत अबु बक्र सिद्दीक़ (रज़ि)
HISTORY OF HAZRAT ABU BAKAR
इन मशाहीर की ज़िन्दगियां और कुरबानियां हमारे लिए मशअले राह हैं ।
HAZRAT ABU BAKAR RAZI. |
"आज भी हो जो इब्राहिम सा ईमान पैदा आग कर सकती है अन्दाज़े गुलिस्तां पैदा"
जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए हैं वही अपने रब के नज़दीक सिद्दीक़ और शहीद हैं, उनके लिये उनका अज्र और उनका नूर है। और जिन लोगों ने कुफ़्र किया है और हमारी आयतों को झुटलाया है वो दोज़ख़ी हैं।
( क़ुरआन , 57 : 19)
इब्तिदाई ज़िन्दगी
आपका नाम अब्दुल्लाह था ,आपके वालीद का नाम उस्मान था उनकी कुनियत कहाफ़ा थी , आपकी वालिदा का नाम सलमा है जो अबु कहाफ़ा की चचेरी बहन थी , आपका उपनाम अबु बक्र था और लक़ब सिद्दीक़ और अतीक़ था। आपने बे ख़ौफ़ हो कर अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) की बे झिझक तस्दीक़ फ़रमाई और सच्चाई को अपने लिए लाज़िम फरमाया
हज़रत अबु बक्र ( रज़ि ०) बड़ी खूबियों के मालिक थे। आप सच को पसंद करते सच बोलना आपकी ख़ूबी थी। यही वजह थी के जब अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम ) ने आपको इस्लाम की दावत दी तो आपने ज़रा भी टाल मटोल नही किया और फ़ौरन इस्लाम क़बूल कर लिया
इस्लाम आने के बाद आपका तर्ज़े अमल
जब हज़रत अबु बक्र (रज़ि) ने इस्लाम क़बूल किया तो उस वक़्त इस्लाम क़ुबूल करना का मतलब मार खाना (पिटाई) था पर हज़रत अबु बक्र (रज़ि) ने ना ही इस्लाम को छोड़ा और ना ही अल्लाह के रसूल ( अलैहिस्सलाम ) का साथ छोड़ा था। वो हर मुश्किल वक़्त में अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) के साथ थे जब मक्का में इस्लाम कबूल करने वाले लोगों पर ज़ुल्म किया जा रहा था तब भी और हिजरत के वक़्त भी आप अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) के साथ साथ खड़े थे,
इसलिए आपकी फ़ज़ीलत अहादीस में बहुत ज़्यादा आई है ।
• एक वाक़्या
एक बार मक्का में मुशिरको ने अल्लाह के रसूल ( अलैहिस्सलाम ) को पकड़ लिया और आप को घसीटने लगे और कहने लगें की तू ही हैं जो एक ख़ुदा को मानता है। अल्लाह की क़सम ! किसी को दुश्मनो के मुक़ाबले की हिम्मत न हुई मगर हज़रत अबु बक्र ( रज़ि ) आगे बढ़े और वे दुश्मनों को मार मार कर हटाते जाते थे और कुरआन की सुरहा मोमिन की वो आयत बोलते जाते थे कि हाय अफ़सोस ! तुम एक ऐसे शख़्स को इसलिए क़त्ल करना चाहते हो , जो कहता है की मेरा रब तो एक अल्लाह है ।
( सहीह बुख़ारी : 3678)
अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) ने हज़रत अबु बक्र (रज़ि) के बारे में फ़रमाया
की जितना मुझे हज़रत अबु बक्र (रज़ि) के माल और वक्त से नफा पहुँचा है , किसी के माल और वक्त से नहीं पहुँचा ।
(सहीह बुखारी 1399)
दौरे ख़िलाफ़त के मनसब पर ख़िदमत
जब अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) की वफ़ात की ख़बर मिली तो हज़रत उमर फ़ारूख़ ( रज़ि ) बहुत गुस्से में आ गए और लोगों को इस बात पर एतमात ही नही हुआ के आप वफ़ात पा गए हैं दुनियावी ऐतबार से और उस वक़्त हज़रत अबु बक्र (रज़ि) का वो किरदार लोगों के सामने आया, जो अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) ने उन्हें सिखाया था। उन्होंने यह तारीख़ी क़लीमाता बोल कर लोगों को समझया ।
فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ يَعْبُدُ مُحَمَّدًا ﷺ فَإِنَّ مُحَمَّدًا ﷺ قَدْ مَاتَ ،
وَمَنْ كَانَ يَعْبُدُ اللَّهَ فَإِنَّ اللَّهَ حَيٌّ لَا يَمُوتُ ،
अगर कोई शक़्स तुम में से मुहम्मद ( ﷺ) की इबादत करता था तो वो जान ले के मुहम्मद (ﷺ) की वफ़ात हो चुकी हैं ,
और अगर कोई अल्लाह की इबादत करता हैं और करेगा तो वो जान ले के अल्लाह बाकी रहने वाला है, और वो कभी मरने वाला नहीं हैं।
(सहीह बुख़ारी 1241)
और क़ुरआन की यह आयत तिलावत की जिसका तर्जुमा यह हैं
मुहम्मद ( ﷺ ) इसके सिवा कुछ नहीं कि बस एक रसूल हैं, उनसे पहले और रसूल भी गुज़र चुके हैं। फिर क्या अगर उनका इंतिक़ाल हो जाए या उनको क़त्ल कर दिया जाए तो तुम लोग उलटे पाँव फिर जाओगे? याद रखो! जो उलटा फिरेगा, वह अल्लाह का कुछ नुक़सान नहीं करेगा। हाँ, जो अल्लाह के शुक्रगुज़ार बन्दे बनकर रहेंगे, उन्हें वो उसका बदला देगा।
( क़ुरआन , 3 : 144)
अभी सहाबा तदफीन से फ़ारिग़ भी नही हुए थे की एक सहाबी आये और बताया के अंसार अल्लाह के रसूल ( अलैहिस्सलाम ) के ख़लीफ़ा अंसार में से चुनने की लिए सकिफ़ा बनी सईदा में जमा हो गए हैं।
इस तरह मुसलमानों के लिए ज़रूरी हो गया था कि अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम ) का एक खलीफा बग़ैर किसी इख्तिलाफ के चुना जाए इसलिए यह ज़रूरी था कि हर मुम्किन कोशिश से इस फ़ित्ने पर काबू पा लिया जाए।
वहां जाने के बाद लोगों को समझया की अंसार ने इस्लाम की बहुत ख़िदमत की है और अब अंसार इस्लाम मे तफरक़़ा पैदा करने वाले ना बने, जब लोग बात समझने लगे और हज़रत अबु बक्र ( रज़ि ) की बातों से मुत्तफ़िक़ होने लगे तो आपने फ़रमाया के हज़रत उमर फ़ारूख़ (रज़ि) या हज़रत अबु उबैदा (रज़ि) में से किसी एक को अपना ख़लीफ़ा चुन लो
हज़रत उमर (रज़ि) और हज़रत अबु उबैदा (रज़ि) ने एक साथ कहाँ हरगिज़ नहीं अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) के फ़रमान के मुताबिक़ नमाज़ आपके सुपुर्द है, आप हमारी इमामत करते है इसलिए आप अपना हाथ आगे करे जिससे हम सब आपकी बैअत कर सके
फिर क्या था । देखते देखते लोगों ने हज़रत अबु बक्र (रज़ि) के हाथ पर बैअत करना शुरू कर दी और वह बग़ैर इख़्तिलाफ़ के ख़लीफ़ा चुन लिए गए।
( सहीह बुख़ारी 3668 )
हज़रत अबु बक्र (रज़ि) की ख़िलाफ़त के दौर में ही वो अज़ीम काम अंजाम दिया गया है।
हज़रत उमर फ़ारूख़ ( रज़ि) ने हज़रत अबु बक्र ( रज़ि ) से कहाँ के जंगे यमामा में बहुत सारे हाफ़िज़ ए क़ुरआन शहीद हो गए हैं , और मुझे ऐसा लगता है आने वाली जंगों में भी कहीं हाफ़िज़ ए क़ुरआन शहीद ना हो जाये इसलिए आप क़ुरआन को एक किताब की शक़्ल में जमा करवा दीजिये , इस पर हज़रत अबु बक्र (रज़ि) ने कहां के मैं वो काम कैसे करूँ जो अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम ) ने नही किया हो, तो हज़रत उमर (रज़ि) ने उन्हें समझाया और हज़रत अबु बक्र (रज़ि) उनकी बात से कायल हो गए और कहा के अल्लाह ने, हज़रत उमर (रज़ि) का दिल इस बात पर खोल दिया था और उनकी बात समझ कर मेरा भी दिल खुल गया ।
यह सारी बातों के बाद हज़रत अबु बक्र (रज़ि) ने हज़रत ज़ैद बिन साबित (रज़ि) को बुलाया और उनको सारी बात बताई गई और उनसे कहा गया के आप इस अज़ीम और मुश्किल तरीन काम को अंजाम दीजिए और क़ुरआन को एक किताब की शक़्ल में जमा कर दीजिये।
(सहीह बुख़ारी : 4986)
बग़ावत पर रोक
हज़रत अबु बक्र (रज़ि) की ख़िलाफ़त में एक ऐसा दौर भी आया जहां लोगों ने इस्लाम से बग़ावत करना और अपने अपने सर उठाना भी शुरू कर दिया थे।
हज़रत अबु बक्र ( रज़ि) ने इन सब बग़ावतों को कुचलने के लिए ग्याहर बहादुर सिपहसालार के मातहत में अलग अलग टुकड़ियां रवाना की,
इसमें सबसे पहले उस लश्कर का नाम आता है, जिसको आप (अलैहिस्सलाम) ने अपनी वफात से चंद दिन पहले रवाना करने का इरादा किया था, वोह लश्कर
हज़रत उसामा ( रज़ि) की सरकरदगी में रवाना हुआ जंग पर जाते हुए अबु बकर (रज़ि) ने कुछ हिदायत दी कि जिसे हर सिपहसालार को मानना था।
1 किसी काम में ख़यानत न करना।
2 दुश्मनो की लाशों की बेइज्जती ना करना।
3 फलदार पेड़ों को ना काटना और ना उनको आग लगाना ।
4 किसी बच्चे को क़त्ल ना करना , ना किसी औरत पर हमला करना ,और ना किसी बूढ़े आदमी को क़त्ल करना ।
5 लोगों के मज़हब में ज़बरदस्ती दख़ल ना देना और क़तई तौर पर किसी को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाने की कोशिश ना करना ।
ऐसी बहुत सारी हिदायतें थी जो सिपहसालारों को दी गई थी हज़रत अबु बक्र (रज़ि) की जानिब से
हज़रत अबु बक्र (रज़ि) के सामने एक और मसला आया जिसमे मुसलमान ख़ुद मुब्तिला थे वो मसला ज़कात का था
हुआ ऐसा था के मुहाजरिनों और अंसार के अलावा सबने ज़कात देने से इंकार कर दिया था
हज़रत अबु बक्र (रज़ि) ने कहां के जो लोगो अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) के वक़्त कोई एक जानवर देते था और उसकी रस्सी भी देता था और अब वो उस जानवर की रस्सी नही देगा तो में उनसे जंग करूँगा
हज़रत उमर फ़ारूख़ (रज़ि) ने हज़रत अबु बक्र ( रज़ि) को समझने के लिए अपनी दलील पेश की और फिर हज़रत अबु बक्र (रज़ि) ने लोगों को बार बार समझाया के ज़कात इस्लाम के पांच फर्ज़ों में से एक फ़र्ज़ है और उसी पर हुक़ूमत टिकी हुई है , बैतुलमाल ज़कात ही पर चल रहा हैं और बग़ैर इसके हुक़ूमत कमज़ोर हो जाएगी ।
हज़रत उमर फ़ारूख़ (रज़ि) कहते है के उस वक़्त अल्लाह ने हज़रत अबु बक्र (रज़ि) का दी खोल दिया था जिससे हम सबको उनकी बातें समझ मे आई
( सहीह बुख़ारी 1456,1400 )
चुनांचे हज़रत अबु बक्र (रज़ि) ने फ़ौजकशी की और थोड़े ही दिनों में हीं बगावत करने वाले लोगों का पूरा ज़ोर खत्म कर डाला।
आख़री वक़्त पर कुछ हिदायत
साहबा इक़राम के सामने वो मंज़र भी आ गया जिससे इस दुनिया मे कोई शख़्स बच नहीं सकता हैं।
हज़रत अबु बक्र (रज़ि) बुख़ार में मुब्तिला हुये । आपको यह यक़ीन हो गया था के अब मेरा आख़री वक़्त आ ही गया हैं , तो आपने सहाबियों में से हज़रत अब्बुर्रहमान बिन औफ़ (रज़ि) , हज़रत उस्मान ग़नी (रज़ि ) और हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) को अलग - अलग वक़्त में बुलवा कर हज़रत उमर फ़ारूख़ (रज़ि) के बारे में पूछा
सभी सहाबियों ने हज़रत अबु बक्र (रज़ि) की राय पर मुत्तफ़िक़ हो गये।
फिर आप मस्जिद ए नबवी में तशरीफ़ लाये ओर तमाम सहबियों से पूछा की जिसे मैने मशवरा से ख़िलाफ़त के लिए चुना है पर तुम सब मुत्तफ़िक़ हो , और तमाम सहाबियों ने इस राय को तस्लीम कर लिया।
आपने फ़रमाया तो अब तुम सब हज़रत उमर फ़ारूख़ (रज़ि) का कहना सुनो और उनकी इताअत करो ।
इसके बाद हज़रत उमर फ़ारूख़ (रज़ि) से बोले
मैने तुम्हे सभी मुसलमानों पर अपना ख़लीफ़ा बनाया हैं , अल्लाह से खुले जेड छिपे में डरते रहना ,
ऐ उमर ! अल्लाह के कुछ फ़र्ज़ हैं , अल्लाह नाफ़लों को क़ुबूल नहीं करता , जब तक कि फ़र्ज़ ना अदा कर दिए जाएं
ऐ उमर ! जिनके नेक अमल क़यामत में वज़नी होंगे , वहाँ कामियाब होंगे और जिनके नेक अमल कम होंगे वहीं मुसीबत में फसेंगे
ऐ उमर ! फलाह ओर निजात की राहें, क़ुरआन पर अमल करने और हक़ की पैरवी से मयस्सर होती हैं
सब वसीयतों के बाद उसी शाम को या अगले दिन में आपका इन्तिक़ाल हो गया
इंनलिल्लाहि व इंना इलैहि राजिउन........!
Mashallah bhai
ReplyDeleteMashaAllah bhaijaan Alláh taal'a apko khoob Kamyabi de Aameen Summa Aameen 👍👍
ReplyDeleteJazakallah Khair
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