हिन्द में इस्लाम आने के असली असबाब
सोचने और सवाल करने से ही ग़ुलामी की बेड़ियाँ टूटती हैं और नये रास्ते हमवार होते है
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हम देखते है के बहुत सारी किताबों में लिखा होता है के दीन ए इस्लाम के बानी (Founder) अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) है मतलब के इस्लाम पहली बार (610 ई०) में ही आया था। लेकिन जब हम इसके ताल्लुक से क़ुरआन से जानकारी हासिल करते है तो हमें यह मालूम होता है के इस्लाम तो जब से दुनिया बनी है तब से ही है |
जब अल्लाह ने हरज़त आदम (अलैहिस्सलाम) को दुनिया मे भेजा था तो उन्हें भी ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए दीन ए इस्लाम ही दिया गया था और आगे आने वाले पैग़म्बर जैसे हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम), हज़रत यूनुस (अलैहिस्सलाम ) , हज़रत इब्राहिम (अलैहिस्सलाम) , हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) और हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) सब के सब पैग़म्बर एक ही दीन लाये थे । और सारे पैग़म्बरों की शरीयत (इस्लामी कानून) वक़्त और हालात से अलग अलग थी पर सब में नमाज़ , रोज़ा, और ज़कात फ़र्ज़ थी ।
इसी तरह अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) को भी दीन ए इस्लाम ही दिया गया था अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) की शरीयत में भी नमाज़ , रोज़ा , ज़कात फ़र्ज़ है और कुछ चीज़े हराम कर दी गई है जो पहले उम्मतों में हलाल की हुई थी इसलिए यह शरीयत अलग है क्योंकि अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) आख़री पैग़म्बर है और क़ुरआन ख़ुदा की भेजी हुई आख़री किताब हैं जिसमें साफ साफ और खोल खोल कर बता दि गई हिदायतें है। दुनिया मे उस वक़्त इस्लाम कोई नया दीन नहीं था और इसी तरह हिन्द में भी इस्लाम कोई नया नही था
हिन्द में मोहम्मद बिन क़ासिम का आना
हिन्दुस्तान में इस्लाम किस तरह आया और कैसे आया इस बारे में तारीख़दान (Historian) बताते है के मोहम्मद बिन क़ासिम के ही साथ हिन्द में इस्लाम आया है पर मोहम्मद बिन क़ासिम (712 ई०) में आये थे और हम जब मोहम्मद बिन क़ासिम की तारीख़ पढ़ते है तो हमें मालूम होता है के वो सिंध में क्यों आये थे और क्या वजह रही थी उनकी आने की जब तारीख़दान अरब की तारीख़ के बारे में लिखते है के उस वक़्त अरबों का बादशाह (वलीद बिन अब्दुल मलिक) था जो बहुत ही ज़ालिम था उनका सबसे वफादार आदमी कूफ़ा का गवर्नर हज्जाज बिन यूसुफ था। उसने बहुत सारे साहबों को कत्ल भी कराया था। मक्का पर चढ़ाई भी की थी । हज्जाज बिन यूसुफ की भी एक अलग दास्तान है और उसका भतीजा और दामाद मोहम्मद बिन क़ासिम था
जब अहले बैत (सादात) पर हज्जाज बिन यूसुफ की तरफ से तशद्दुद करा जा रहा था तो वहां के अहले बैत अरब से निकल बग़दाद के रास्ते सिन्ध के राजा दाहिर के पास जा पहुँचे सादात का पीछा कर ने के लिए मोहम्मद बिन क़ासिम को भेजा और बंदी बना कर लाने का हुकुम भी दिया और मोहम्मद बिन क़ासिम ने वहां पर ज़ुल्म की इन्तिहा कर डाली आज भी हम वहां के रहने वाले (सिंधियों) और (सादात) से पूछे तो वो बतायगे के हमारे बुजुर्गों पर क्या ज़ुल्म हुआ था मोहम्मद बिन क़ासिम की जानिब से
जो वाक़या मोहम्मद बिन क़ासिम से जोड़ा जाता है वो इस तरह बयान किया जाता हैं
यह ख़त अबुल हसन की बेटी नाहिद ने सिंध से एक सफेद रुमाल पर अपने खून से हज्जाज बिन यूसुफ के लिए लिखा था, और क़ासिद से कहा था…
“अगर हज्जाज बिन युसुफ़ का खून मुंजमिद हो गया हो तो मेरा ये खत पेश कर देना वरना इसकी जरूरत नहीं है।
इस ख़त को पढ़ने के बाद 17 साल की उम्र के मुहम्मद बिन कासिम की सिपहसालारी में मुजाहिदीन-ए-इस्लाम ने सिंध को रौंद डाला था, और क़ौम के बच्चों और औरतों के साथ साथ सालों से ज़ालिम हुक्मरानों के हाथों पिसती सिंध की अवाम को निजात दिलाई थी, और राजा दाहिर को दिखा दिया था कि अभी मुजाहिदीन-ए-इस्लाम की तलवारे कुंद नहीं हुई हैं।
यह वाक़या सिरे से झूठा है अगर ऐसा होता तो जब अरब का बादशाह (सुलैमान बिन अब्दुल मलिक) बना तो उन्होंने मोहम्मद बिन क़ासिम को बुलवा कर ज़िंदान (जेल) में क्यों डाल दिया इस बात से यह ज़ाहिर हो जाता है के मोहम्मद बिन क़ासिम उनको बचाने के लिए नही आये थे, वो तो उन अहले बैत (सादात) को पकड़ने आये थे जो हज्जाज बिन यूसुफ के ज़ुल्म से भागे थे। मोहम्मद बिन क़ासिम की वजह से हिन्द में इस्लाम नही आया था ।
तारीख़दान इस बात पर मुतफ़िक़ है और तारीख़ी किताबें जैसे (तारीख़े बग़दाद) और (तारीख़े याक़ूबी) के हवाले से सिंध के (पांच अफ़राद) अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) के हाथ पर ईमान ला चुके थे। इस्लाम तो सिंध में अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) के वक़्त में ही आ गया था
हिन्द में इस्लाम
इस्लाम हिन्दुस्तान में उस वक़्त ही आ गया था जब अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) ने हिजरत कि थी हम देखते हैं के गुजरात के शहर भावनगर के गांव घोघा में एक मस्ज़िद बनी हैं जिसे बेहरवाड़ा मस्ज़िद या जूनी मस्ज़िद के नाम से जाना जाता हैं जिसका रुख़ बैतूल मुक़दस की तरफ है
जिसे तारीख़दान ने अपनी राय के मुताबिक कहाँ हैं के अरब के लोग (620 - 22 ई०) के वक़्त आ चुके थे।
हम सब ज़्यादतर चैरामन जुमा मस्ज़िद के बारे में भी जानते ही है के वहां मालिक बिन दीनार जो ताजिर थे जो ( 629 ई०) के क़रीब हिन्दुस्तान के दक्षिण हिस्से में आये थे और वहां के राजा चैरामन पेरूमल ने उनके कारोबार और उनके अखलाक़ से मुत्तासिर होकर अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) के हाथ पर ईमान लाये थे। और उनकी जनता ने भी इस्लाम क़ुबूल किया और नमाज़ पढ़ने के लिए मस्ज़िद बनाई गई ओर दक्षिण हिन्दुस्तान के मुसलमानों का मरकज़ बनाया।
सूफी , सुल्तान और मुग़ल
ज़्यादातर यह भी देखने मे आता है के हिन्द में जो सूफी आये उन्ही के बदौलत इस्लाम की तालीमात सही तरह से फैली यह सही है पर इसका यह मतलब हरगिज़ नही है के हिन्द में इस्लाम की तालीमात से लोग वाबस्ता नही थे। कुछ लोग सुल्तानों और मुग़लों को भी इस्लाम लाने वाले मानते है
हिन्दुस्तान में मोहम्मद बिन क़ासिम , सूफी , सुल्तानों और मुग़लों की वजह से इस्लाम हिन्दुस्तान में नही आया था बल्कि इस्लाम तो अल्लाह के रसूल (अलैहिस्सलाम) के वक़्त ही हिन्द में आ गया था और पूरी तालीमात के साथ आया था ।
MashaAllah nice post
ReplyDeleteMashaAllah
ReplyDeleteMashaAllah great post 👌👌
ReplyDeleteMashallah nice post 👍👍
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