हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ि०)
हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ि०) को (सैफुल्लाह) के लक़ब से भी जाना जाता है यह लक़ब अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने उन्हें ख़ुद दिया था।
रचनात्मक तस्वीर - हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ि०) |
जैसा के हम जानते है के मक्का के लोग खुली जाहलियत में मुब्तिलाह थे। उसी तरह हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ि०) भी अपनी जहलियत के दौर के बारे मैं बयान करते है। में यह सोचता था के किस तरहा अल्लाह के रसूल (सल्ल ०) को मुश्किल में मुब्तिला करूँ जिससे यह अपनी दावत का काम रोक दे और हर उस जंग में शरीक़ हो जाऊं जो अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के ख़िलाफ़ हो और उसका उल्टा असर मुझे दिखाई दे रहा था। अल्लाह के रसूल (सल्ल ०) की दावत से मेरा भाई इस्लाम मे दाख़िल हो गया था और मेरे अज़ीज़ दोस्त भी इस्लाम की दावत से मुतास्सिर हो रहे थे। मुफ़स्सिरीन लिखते है हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ि०) दानिशमंद इंसानों में से थे जो दुनिया में गौरों फ़िकर करते थे इसी के चलते उन्होंने इस्लाम क़बूल किया था उनका इस्लाम कबूल करने का वाक़या हदीस की किताबों और तारीख़ी क़िताबों में भी मौजूद है
जब अल्लाह के रसूल ( सल्ल ०) ने नुबूवत का ऐलान किया उसके बाद हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ि०) 19 साल बाद इस्लाम मे दाख़िल हुए थे और अल्लाह ने उनसे किस तरह काम लिया और कैसी - कैसी जंगों में उन्हें शुमार किया
( सिपहसालार के मनसब पर इस्लाम की ख़िदमत )
हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ि०) ने अपनी ज़िन्दगी में सौ जंगे लड़ी है और सौ की सौ जंगे जीती हैं , इंसानियत की तारीख़ में ऐसा कोई सिपहसालार (General) नही मिलता जिसने इतनी जंगे लड़ी हो और जीती भी हो तारीख़ में सिकंदर आज़म भी जंगों में शिखस्त खाया हुआ हैं।
हज़रत ख़ालिद बिन वलीद ( रज़ि ०) ने तो ऐसी भी जंगे जीती है जिसमे काफ़िरों की तरफ से आये थे और वो भी जंग जीत के गए थे जिसे (ग़ज़वा ए उहद ) कहाँ जाता हैं
जिसमे अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के चार दाँत भी शहीद हुए थे। पर हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ि०) इसे अपनी हार मानते है और इसे इस्लाम मे दाख़िल होने की पहली सीढ़ी मानते हैं।
( जंग ए मोता )
हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ि०) की काफ़िरों से पहली जंग ( सरिया-ए-मूता ) की जंग थी। जो रूमियों के ख़िलाफ़ थी।
अल्लाह के रसूल ( सल्ल ० ) ने हज़रत हारिस ( रज़ि०) को रूमियों की तरफ़ क़ासिद बना कर भेजा था। और जब हज़रत हारिस ( रज़ि ०) की शहादत की ख़बर मिली तो आप ( सल्ल ० ) ने फ़ौरन रूमियों से जिहाद के लिए एक लश्कर तैयार किया ।
आप ( सल्ल ०) ने तीन हज़ार मुजाहिदीन के इस लश्कर पर ज़ैद बिन हारिस ( रज़ि० ) को सिपहसालार मुक़र्रर करके फ़रमाया कि अगर हज़रत जैद बिन हारिस शहीद हो जाएं तो हज़रत जाफ़र बिन अबू तालिब ( रज़ि ० ) कायादत संभालेंगे अगर वो भी शहीद हो जाएं तो अब्दुल्लाह बिन रवाहा ( रज़ि०) सिपहसालार होंगे अगर वह भी शहीद हो जाएं तो जमाअत जिसे चाहे सिपहसालार मुक़र्रर कर ले।
और जमाअत ने हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ि०) को सिपहसालार मुक़र्रर कर लिया और जमाअत को फ़तह नसीब हुई
हज़रत ख़ालिद बिन वलीद ( रज़ि ०) पूरे जोश से रूमियों के साथ लड़ रहे थे । लड़ाई की शिद्दत का अन्दाज़ा खुद हज़रत ख़ालिद बिन वलीद ( रज़ि ०) की इस बात से लगाया जा सकता है कि " इस जंग के दौरान मेरे हाथ से नौ तलवारें टूटीं । सिर्फ यमनी तलवार सलामत बची । हज़रत ख़ालिद बिन वलीद ( रज़ि ०) और सहाबा इकराम ने जिस हिम्मत और इंतिज़ाम के साथ आगे की जंग लड़ी और रूमियों के लश्कर को परेशानी में डाल कर अपने लश्कर को बचा कर ले आये।
मदीना मुनव्वरा में अल्लाह के रसूल ( सल्ल० ) को अल्लाह तआला इस जंग का मन्ज़र ( दृश्य ) दिखा रहा था और आप ( सल्ल०) सहाबा ( रज़ि ०) को जंग का हाल बता रहे थे ।
जब हज़रत ख़ालिद बिन वलीद ( रज़ि ० ) ने लश्करे इस्लाम का झण्डा हाथ में लिया , तो आप ( सल्ल ०) ने दुआ फ़रमाई , “ ऐ अल्लाह ! वह तेरी तलवारों में से एक तलवार है । अब तू ही उसकी मदद फ़रमा । "
उस दिन से हज़रत ख़ालिद ( रज़ि० ) का लोग सैफुल्लाह के लक़ब से पुकारने लगें और आप इस लक़ब के पूरे हक़दार भी थे , क्योंकि आपने इन्तिहाई नाज़ुक मौके पर लश्क़रे इस्लाम को तबाह होने से बचा लिया था ।
(सहीह बुख़ारी)
Jazak'Allahu Khairan 👍👍
ReplyDeleteJazakAllah
DeleteThis comment has been removed by the author.
DeleteThis comment has been removed by the author.
DeleteGreat islamic history
Delete