अल्लामा मश़रिक़ी | HISTORYMEANING

अल्लामा मश़रिक़ी


बोस की INA से बड़ी आर्मी बनाने और ' सर ' की उपाधि ठुकराने वाला नायक


अल्लामा मश़रिक़ी


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इनायतुल्लाह ख़ान उर्फ अल्लामा मश़रिक़ी

5 मई 1947 का एक भाषण..

                                

 विभाजन ( India Partition ) को लेकर जो स्थितियां बन रही हैं , अब आखिरी उपाय यही है कि हम सब एक होकर खड़े हों . हिंदू मुसलमान  सब इकट्ठे होकर एक क्रांति करें भले ही वो अंग्रेज़ों
( British Raj ) की गोलियों के शिकार हों . बेशक इसमें लाखों लोग मारे जाएंगे लेकिन करोड़ों लोग हमेशा के लिए बच जाएंगे . अगर कुछ लोगों ने सत्ता की हवस के चलते दुनिया को सिर्फ अत्याचार और लूट की बर्बरता दिखाने की ठानी है , तो लाखों लोगों को बलिदान देकर सच्चाई , सम्मान और न्याय की लड़ाई लड़ना होगी . पटना (Patna) में 5 मई 1947 को अल्लामा मशरिक़ी ने 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों के सामने ये भाषण दिया था , जिसमें देश के विभाजन की अंग्रेज़ी नीति  (Divide & Rule Policy ) का बेलाग विरोध था

तरबियत और तहरीक़


स्कॉलर , दार्शनिक , लेखक और राजनीतिज्ञ इनायतुल्लाह ख़ान उर्फ अल्लामा मशरिकी ने 1930 के दौरान ख़ाकसार तहरीक़ यानी आंदोलन की नींव रखी थी , जिसमें हर धर्म , संप्रदाय और वर्ग के लोग शामिल हुए थे . कहते हैं कि 1940 में इस आंदोलन में 40 लाख खाकसार शामिल थे और 1946 के आखिर तक 50 लाख . भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में यह सबसे बड़ी देशी आर्मी थी . मशरिकी के आह्वान पर लाखों लोग भारत की आज़ादी के लिए सैनिक बन चुके थे
मशरिकी कई बार अंग्रेज़ों के निशाने पर आ चुके थे और कानून को ताक पर रखकर उनके खिलाफ एक्शन लिये जा चुके थे . 1939 में ख़ाकसार तहरीक़ के जांबाज़ों ने उत्तर प्रदेश में ब्रितानी हुकूमत को उखाड़ फेंका और देश की पहली समानांतर सरकार की घोषणा की . खाकसार तहरीक ने अपनी मुद्रा तक जारी कर दी थी . अंग्रेज़ों ने लाहौर में 1940 को ख़ाकसार जांबाज़ों का बर्बर नरसंहार किया . इसके बावजूद मशरिकी के आंदोलन की बड़ी भूमिका थी कि भारत को आज़ादी देने की प्रक्रिया अंग्रेज़ों को शुरू करना पड़ी .



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अल्लामा मश़रिक़ी की आर्मी


नेताजी सुभाष चंद्र बोस और मशरिकी़ 


नेताजी सुभाष चंद्र बोस और मश़रिक़ी एक ही समय में समानताओं वाले नेता हुए . दोनों ने देश को आज़द करने के नेताजी सुभाष चंद्र बोस और मश़रिक़ी एक ही समय में समानताओं वाले नेता हुए . दोनों ने देश को आज़ाद करने के लिए फौजें तैयार की . दोनों ने महात्मा गांधी के तरीक़ो पर अविश्वास जताकर आक्रामकता को तरजीह दी . दोनों नेताओं के बीच अंतर ये थे कि बोस ने देश के बाहर जाकर सैन्य गतिविधियां संचालित कीं , वहीं , मश़रिक़ी ने देश के अंदर स्वदेशी आर्मी तैयार की . 1945 में प्लेन क्रैश हादसे के बाद बोस की आईएनए की भूमिका लगभग खत्म हो गई थी और 35 हज़ार सोल्जर रह गए थे , लेकिन खाकसार आंदोलन 1947 तक चलता रहा


आज़ादी का जज़्बा


यू .के (UK) में उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद गणितज्ञ और चिंतक के रूप में मशरिकी मशहूर हुए थे . 1912 में भारत लौटकर उन्होंने अलवर के दरबारी की पदवी ठुकराकर शिक्षा के क्षेत्र में सेवाएं दीं . 1920 में अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें राजदूत बनने और 1921 में ' सर ' की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा , लेकिन उन्होंने दोनों ही सम्मान ठुकरा दिए . 1924 में उनकी किताब तज़क़िरा को नोबेल पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था लेकिन उन्होंने इस किताब के अनुवाद में भी दिलचस्पी नहीं ली . वो पूरी तरह ख़ाकसार आंदोलन के प्रणेता बने रहे ।





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Milan Tomic

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