महरौली पुरातत्व पार्क
Mehrauli Archaeological Park
महरौली दिल्ली का वो महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसमें सदियों से आबादी बस्ती आई हैं इसकी तारीख़ 1000 साल से भी ज़्यादा पुरानी है , इस पार्क के भीतर दिल्ली पर राज करने वाले लगभग हर राजवंश के दौर में बनाई गई इमारतें या उनके अवशेष देखने को मिलते है
महरौली पुरातत्व पार्क दक्षिण दिल्ली में क़ुतुब परिसर में स्थित है। दक्षिण दिल्ली में संपूर्ण विश्व में सबसे अधिक स्मारक हैं। एक दशक पहले तक इस वन क्षेत्र में जाना सुलभ नहीं था। स्मारकों के अलावा यहाँ 100 एकड़ की जमीन पर कई मस्जिदें, कब्रें एवं उद्यान हैं जिनके नाम नहीं हैं। जहां ग़यासुद्दीन बलबन का मक़बरा है पर उसमें बलबन की कब्र नहीं है आज तक किसी को भी इसकी जानकारी नहीं है के उसकी कब्र कहां गई
पर उनके बेटे मुहम्मद ख़ान जिन्हें (ख़ान शहीद ) के नाम से भी जाना जाता है बलबन के मक़बरे के बगल में ही उनकी कब्र हैं ख़ान शहीद ने लाहौर में मोंगोलो से लड़ते हुए आपनी जान दे दी थी।
बलबन ने दिल्ली सल्तनत पर 1266 से 1287 तक शासन किया था। बलबन के मक़बरे में एक ख़ास और आकर्षक चीज़ है मेहराब माना जाता है के हिंदुस्तान में सबसे पहली
संरचना है जिसमें उचित तरह से मेहराब बनाये गये है।
जमाली-कमाली मस्जिद एक ऐसी ही अन्य संरचना है जिसकी अपनी एक कहानी है। इस मस्जिद का नाम जलाल खान के नाम पर रखा गया है जो सिकंदर लोदी और हुमायूं काल में एक कवि एवं संत थे।
यहं कमाली की कब्र भी है जिनके बारे में अधिक जानकारी नहीं है। पार्क में अन्य आकर्षण मेत्काल्फे शामियाना, मेत्काल्फे बोटहाउस, कुली खान का मकबरा, मेत्काल्फे डाक बंगले, राजों की बावली, गंधक की बावली, मौलाना
निज़ामुद्दीन औलिया कब्र, खान शाहिद कब्र, आजम खान की कब्र आदि हैं। ये कुछ ऐसे स्मारक एवं संरचनाएं हैं जो कम प्रसिद्ध हैं
अरब की सराय की बावड़ी
अरब की सराय की बावड़ी का अस्तित्व अब नाममात्र का ही रह गया है। इस बावड़ी में अब पानी नहीं रह गया है। अब यह बता पाना भी संभव नहीं है कि यह कब से सूखी हुई है।‘अरब की सराय’ की इमारत हुमायूं के मकबरे के दक्षिण-पश्चिम में कुछ ही दूरी पर बनी हुई है। इस सराय का निर्माण अकबर की मां हमीदा बेगम ने सन् 1560 में करवाया था। इस सराय को ‘अरब की सराय’ कहने का कारण कुछ इतिहासकार इस तरह से बताते है हुमायूं की हमीदा बेगम हज यात्रा पर मक्का गई थीं। वापसी में वे अपने साथ अरब के 300 निवासियों को अपने साथ लाई थीं। यह सराय उनके ठहरने के लिए बनाई गई थी। अरब से आए इन निवासियों को दस्तकार माना जाता है। हुमायूं के मकबरे के निर्माण में इन दस्तकारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस मकबरे को बनाने का काम एक ईरानी कलाविद् मिरक मिर्जी ग़ियास को सौंपा गया था। गुंबज बनाने की ईरानी परंपरा का हिन्दुस्तान में यह पहला उदाहरण है। इस सराय का इस्तेमाल दिल्ली और आगरा की राजधानियों के बीच आने-जाने वाले यात्रियों द्वारा नियमित रूप से किया जाता था।
मुग़लों की आख़िरी इमारत ज़ीनत महल
हम आपको बताते हैं कि मुग़ालिया दौर की आख़िरी इमारत दिल्ली के महरौली इलाके में है। इतिहासकार डा. हिलाल अहमद कहते हैं कि ये मुग़ल दौर की आख़िरी इमारत है। इसे देखकर लगता है कि ये तब बनी होगी जब मुग़लकाल का अंतिम समय चल रहा होगा। इसमें सुंदरता तो आपको दिखेगी, पर भव्यता का साफ अभाव है। इसका नाम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र की पत्नी के नाम पर है। रखा गया था
1857 की जंग के दौरान ब्रिटिश सेना ने इस हवेली पर कब्जा कर लिया और जंग के दौरान मारे गये लोगों की लाशों को इसी हवेली में स्थित एक कुंए में फेंक दिया। यही नहीं तमाम लाशों को हवेली के तहखाने में डाल दिया। कई महीनों तक लाशें यहीं पर सड़ती रहीं।
हवेली के आस-पास रहने वाले लोगों का मानना है कि यहां हुए नरसंहार की वजह से यहां पर आत्माओं ने बसेरा बना लिया। और रात को अक्सर यहां से सिसकियां सुनायी देती हैं।
तैमूर लंग
https://historymeaning6.blogspot.com/2020/07/blog-post_30.html?m=1
जब एक खटिया के लिए तरस गया था अंतिम मुग़ल बादशाह !
https://historymeaning6.blogspot.com/2020/08/blog-post.html?m=1
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