हिन्दुस्तान का वो संघर्ष जिसमें झलकती थी एकता और अखंडता झलक | HISTORYMEANING

हिन्दुस्तान का वो संघर्ष जिसमें झलकती थी एकता और अखंडता झलक

हिन्दुस्तान का वो संघर्ष जिसमें झलकती थी एकता और अखंडता झलक


हिंदुस्तान को तोड़ने की साजिशे


(1600.ई०) में ईस्ट इण्डिया कम्पनी हिंदुस्तान में व्यापार करने के ताल्लुक़ से आई थी । पर उसका मक़सद व्यापार करना नहीं था , वो तो पूरे हिंदुस्तान पर अपना शासन चलना चाहती थी और वो इस मक़सद में कमियाब भी हुई । ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने हिंदुस्तान के वासियों से
ऐसे दो युद्ध किये जिससे हिंद की एकता और अखंडता का संदेश गया था।

Hindustan ka Sangharsh
 ईस्ट इंडिया कंपनी


जिससे कंपनी चौक उठी थी और समझ गई थी इस तरह से शासन नहीं किया जा सकता है। नीचे अंग्रेज़ो की साज़िशे निम्नलिखित तरीको से बयान की गई है ------


 हिंदुस्तान की तारीख़ को बदलना


अंग्रेज़ो से हिंद के निवासियों ने बहुत सारी छोटी , बड़ी लड़ाइयां लड़ी थी पर जिसने हिंद की तारीख़ को बदला
वो यह हैं

पहला युद्ध (1757.ई० ) में लड़ा गया था जिसमें हिंद के मुगल बादशाह और बंगाल के नवाब ने सामना किया था जिसमें मुगल ने तो अंग्रेज़ो से संधि कर ली और आख़िरी नवाब सिराजुद्दौला को मर दिया गया और बंगाल का नवाब मीर ज़ाफर को बना दिया गया इसके बाद से वो बिना टैक्स दिए हिंद की चीज़े विदेश में निर्यात करने लग गए थे।
 उसके बाद अंग्रेज़ो ने दक्षिण में आपना रूख़ किया मैसूर में उनका सामना हैदर अली और उनके बेटे टीपू सुल्तान से हुआ

दूसरा युद्ध (1857.ई०) में हुआ था जिसे हिंद का ग़दर के नाम से भी जाना जाता है इसमें हिंद के निवासियों ने यह साबित कर दिया था । हिंदुस्तान की एकता और अखंडता को थोड़ा नहीं जा सकता हैं , इसमें अंतिम मुग़ल बादशाह , झांसी की रानी, राजपूत राजा , आम जनता भी युद्ध में शामिल हुए थे। अफ़सोस इस युद्ध में भी हार का सामना करना पड़ा था। पर अंग्रेज़ अपने मक़सद में कमियाब नहीं हो पाए थे वो हिंद के निवासी हिन्दू और मस्लामानों की एकता को तोड़ नहीं पाए थे

मुसलमान और हिन्दू की एकता को तोड़ना 


ब्रिटिश सरकार यह समझ गई थी के हिंदुस्तान पर पूर्ण शासन करना है तो हिन्दू और मुसलमानों की एकता को तोड़ना ही पड़ेगा और इन्हे लड़वाना भी होगा गदर के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी हिंदुस्तान से चली गई पर इंग्लैंड की महारानी का राज यहां पर स्थापित हो गया था जो (15 अगस्त 1947.ई०) तक चलता रहा । अंग्रेज़ो ने एक नीति अपनाई थी (Divide and rule) (फूट डालो और शासन करो ) इसमें हिन्दुओं को मुसलमानों से लड़ाया गया था और हिंदुओं में शासन करने की उम्मीद जगाई थी। अफ़सोस अंग्रेज़ी सरकार के शिकंजे में हिंद के कुछ निवासी आ गए और उनको समाज में भेज कर सांप्रदायिकता का माहौल बनाना शुरू कर दिया था पर फिर भी बहुत सारे ऐसे लोग थे जो अपने मक़सद ए आज़ादी से भटके नहीं थे


एक वाक़िया --

जब (अशफ़ाक उल्ला खां ) को काकोरी कांड के जुर्म में क़ैद कर लिया गया था। तो उनसे एक जेलर ने एक मशवरा दिया था तुम क्यों आज़ादी चाहते हो और तुम्हे आज़ादी मिल भी गई तो फिर भी हिन्दू ही राज करेगे तुम्हारे पर तुम्हारा कुछ नहीं होगा तो जवाब में अशफ़ाक उल्ला खां ने बोला के जो तुम्हारी नीति है हिन्दू और मुसलमानों की एकता को तोड़ने वाली वो ज्यादा दिन तक नहीं चलेगी हम एक हो कर हिंदुस्तान की आज़ादी के लिए सौ बार मरेंगे पर जो बीज अंग्रेज़ो ने बोया था वो बीज काम करना शुरू हो गया था।


Hindustan ka Sangharsh
ब्रिटिश सभा


मुसलमानों में से फ़ारसी ज़बान ख़त्म करना नई ज़बान लाना


जब से सुल्तानों ने हिंदुस्तान पर हुक़ूमत करनी शुरू की थी जब से ही हिंद की ज़बान फ़ारसी हो गई थी और बादशाह के दरबार में भी फ़ारसी ही जबान लिखी और पढ़ी जाती थी और आगे चल कर भी यही जबान प्रचलन में रही , मुसलमानों के लिए फ़ारसी बहुत ज्यादा मुफ़ीद थी क्योंकि इसके ज़रिए से क़ुरआन को आसानी से पढ़ा और समझा जा सकता था । (18.वी सदी ) में हिंदुस्तान में पहली बार क़ुरआन मजीद का तर्जुमा फ़ारसी ज़बान में हज़रत शाह वलीउल्ला देहलवी साहब ने किया था उसके बाद से ही अंग्रेज़ो की नज़र फ़ारसी ज़बान पर लग गई
उसके बाद से अंग्रेजों ने एक नई ज़बान को समाज में आम करना शुरू कर दिया जिसे उर्दू के नाम से जाना जाता है
उर्दू को दफ्तरों के लिए अनिवार्य कर दिया था जिससे हिंद के मुसलमानों को क़ुरआन को समझने में और पढ़ने में आसानी ना हो सके और सिर्फ मुसलमानों के साथ यह नीति नहीं अपनाई थी उन्होंने हिन्दुओं को भी उनकी मातृभाषा संस्कृत से भी दूर कर के हिंदी ज़बान दे दी गई। जिससे वो भी खुद के धर्म ग्रंथ को समझ ना पाए इस ज़बान में उलझ कर रहे जाएं।
उन्हें पता था के यह दोनों धर्म के लोग खुद की धर्म की किताब पढ़गे और समझेगे तो इन्हे तोड़ा नहीं जा सकता है इसलिए उन्होंने यह साज़िश रची थी।

मुसलमानों के क़िरदार को गलत पेश करना


उस समय आम जनता हिन्दू और मुसलमान साथ साथ रहते थे जब ब्रिटिश सरकार हिंद पर चड़ाई करी तो उन्हें रोकने वाले सबसे पहले मुसलमान ही थे ,
अंग्रेज़ सोच रहे थे के इन लोगो को आज़ादी जल्दी मिल जाती तो शायद फिर से मुसलमान ही यहां पर सरकार बाएगे इसी बात को लेकर अंग्रेजों ने अपनी सबसे बड़ी नीति अपनाई थी उस साज़िश में मुसलमानों का किरदार को गलत ढंग से पेश करना था। सबसे पहले उन्होंने मुसलमानों को जंग ए आज़ादी कि लड़ाई से हटाने का काम किया क्योंकि दोनों धर्म के लोग एक साथ रहते तो शायद ही वो यहां पर दो सौ साल तक हुक़ूमत नहीं कर पाते इसलिए दो पक्ष को लड़ना ज़रूरी बन गया था एक तरफ हिन्दुओं को सत्ता देने का लालच दिया था और उधर मुसलमानों की हिम्मत को तोड़ा गया लोगो को इस्लाम से दूर किया गया था
आप सब के सामने एक उदाहरण डॉ. भीमराव अम्बेडकर साहब का है ही उन्हें किस तरह इस्लाम और मुसलमान से दूर बहुत दूर किया गया था उन्हें पता था के हिंद की सबसे ज्यादा संख्या शूद्रों की ही है और उनका रुझान इस्लाम की तरफ ज़्यादा है वो इसलिए के उची जात वाले उन्हें अपने सामान नहीं मानेंगे और एक ही धर्म और वो हैं इस्लाम जो हमें समाज में आत्मा सम्मान दिला सकता है ऐसे बहुत सारे वाकियों को देख कर अंग्रेजी हुक़मत ने मुसलमानों की छवि को खराब करने में लगी हुई थी बहुत सारे साधनों से उन्होंने यह काम अंजाम दिये
अख़बारों , किताबों , स्कूल की किताबों से और कुछ ऐसे लोगो से जिन्होंने मुसलमानों में भी तफ़रिक़ (बिगाड़ ) कर दी थी जिससे मुसलमान अपने अंदर हुए बिगड़ को सभाले या जंग ए आज़ादी में लड़े
पर फिर भी मुसलमानों ने यह काम बख़ूबी अच्छी तरह से निभाया था पर जो साज़िश अंग्रेज़ो ने की थी उसका असली रंग तो हिंदुस्तान का विभाजन था और वो अपने मक़सद में कामियाब भी हो गए थे।

विभाजन का समय


विभाजन का वो समय भी आ गया था जिसकी दास्तान सुनके ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं जिसने दोनों देशों के लोगों के दिलों में ही एक लकीर खींच डाली थी

विभाजन के ज़िम्मेदार कुछ लोग मुसलमानों को मानते है और कुछ लोग हिन्दूओ को पर असल में विभाजन के असली गुनहगार तो अंग्रेज़ ही थे जिन्होंने साज़िश के तहत यह सब काम अंजाम दिये थे यह बात और है के उस साज़िश में कौन कौन मिला था । वो सब तो अंग्रेज़ो के मोहरें थे जिसे चलाया जा रहा था एक बहुत बड़ी और लम्बी साज़िश के तहत जो आज भी उससे तेज़ गति और नई नई साजिशो द्वारा चल रही हैं।


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एक ऐसा महायुद्ध जिसे इतिहास के पन्नों में कहीं भुला दिया गया।

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Milan Tomic

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