सरे तस्लीम ख़म है.....
दिल्ली जामा मस्जिद |
एक न्यू मुस्लिम अंग्रेज़ ने अपने इस्लाम क़बूल करने के बारे में और अपनी मुस्लिम ज़िन्दगी के बारे में एक किताब में लिखा है जिसे उर्दू में ( "सरे तस्लीम ख़म है" ) के नाम से अनुवाद किया गया है । जिसमे उन्होंने अपने पहले जुमे की नमाज़ का ज़िक्र किया है ।
इस्लाम किस तरह से ऊंच - नीच और काले - गोरे के भेदभाव को ख़त्म करता है उन्होंने अल्लाह के रसूल (सल्ल०) की एक हदीस का ज़िक्र किया हैं और वो हदीस यह हैं
रसूल (सल्ल०) ने फ़रमाया सफे बराबर कर लो में तुम्हे अपने पीछे से भी देखता रहता हूँ ,
और सहाबा ने फरमाया के हम मे से हर शक़्स ये करता के सफ में अपना कंधा अपने साथी के कंधे से और अपना क़दम (पैर) उस के क़दम (पैर) से मिला देता था
(सहीह बुख़ारी 725)
और वो अपनी किताब में लिखते है के जब में पहला जुमा पढ़ने गया था और जब मै नमाज़ के लिए खड़ा हुआ तो मेरे बराबर एक हब्शी मुस्लिम आ गया
और उसने मेरे क़दम से क़दम मिला लिया और तब मुझे पता चला के इस्लाम किस तरह से भेदभाव को जड़ से ही ख़त्म देता है और क़ुरआन और हदीस की क़िताबों मे यह हुकुम सिर्फ़ लिखे ही नही है उसे अमली तौर पर करने को भी कहाँ गया है और मुस्लिम उसे करते भी हैं
Jazak'Allahu Khairan
ReplyDeleteThis most important information k liye MashaAllah 👍☺️