तारीख़ में तालीम का मक़सद
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हमारी ज़िन्दगी में तालीम का क्या मक़सद हैं ?
हां सोच किसके हाथों तू मजबूर हो गया
तू भी उरूज से बहुत दूर हो गया......
तारीख़ में तालीम का मक़सद |
हम तारीख़ का मुताला करें तो हमें यह पढ़ने में आता है जब मुसलमान दुनिया में उरूज पर थे उस वक़्त मुसलमान तालीम में भी बहुत आगे थे । जब अब्बासियों कि हुक़ूमत आई तो उसके बाद तो तालीम में मुसलमान इतने उरूज पर चले गए के उनके बराबर में कोई आता ही नहीं था। मुसलमान हर उनवान में अपनी एक जगह बना चुके थे। मुसलमान दिन रात तालीम में मज़ीद तरक्क़ी कर रहें थे
हमें यह भी मिलता है के बग़दाद में मुसलमानों का एक अज़ीम कुतुबखाना था जिसमे आला ज़हन के लोगों की किताबें मौजूद थी इन अज़ीम रूहों (किताबों) की मौजूदगी के बावजूद अगर कोई अंधेरों में रहे गया हो तो वो इसका ख़ुद ज़िम्मेदार होगा।
मुसलमानों पर एक ऐसा दौर भी आया जहां उनकी पूरी की पूरी हुक़ूमते उनके हाथो से निकली जा रही थी और उन पर एक शदीद ज़िल्लत तारी हो रही थी
अगर हम इस बात पर ग़ौर करें के मुसलमान तालीम में इतने आगे होने के बावजूद मुसलमान इस ज़िल्लत के शिकार क्यों हुऐ। क्या उनकी ऐसी नादानी थी जो उन्हें इसका शिकार होना पड़ा ? मुसलमान तो तालीम में बहुत आगे थे
( विज्ञान, भुगोल ,इतिहास ,गणित आदि) उनवान में उनके बराबर का कोई ना था ?
हम तारीख़ में देखे तो हमें मिलता हैं कितने मुहद्दीसिन और तारीख़दान थे जिन्होंने अपनी तालीम का एक मक़सद बनाया और उस मक़सद को दीने इस्लाम के लिए वक्फ़ कर दिया और उन्होंने उसमे अपनी जी जान लगा दी। यह सब (आलिम , मुहद्दीसिन और तारीख़दान) अपनी पूरी ज़िन्दगी इस्लाम के लिए वक्फ़ नही करते और डिग्रीयां लेकर बैठ जाते तो आज हमारे पास इस्लाम की तालीमात पहुँचने में ओर बहुत वक़्त लग जाता।
मुसलमान तालिमी तौर से तो आगे थे लेकिन हुक़ूमती तौर और ईमानी तौर से पिछे होते चले गए, ऐश ओ आराम में मुब्तिला हो गया , हक़ - नाहक़ का उनके ज़हनों से दूर हो गया
जब मंगोलों की सेना अब्बासियों की सीमा पर आ गई तो
वहां के आख़री 37वें अब्बासी ख़लीफ़ा (मुस्तआसिम बिल्लाह) शराब के नशे में धुद था इस तरह के ऐश परस्त मुसलमान होते चले गए और हुआ यह के मंगोल का सरदार हलाकू खां ने (1258 ई ०) में मुसलमानों की पुरी हुक़ूमत को नेस्तो नाबूत कर दिया । जिस कुतुबखाने का ऊपर ज़िक्र हुआ था उसको दजला नदी में उढेल दिया और हुक़ूमत की ईंट से ईंट बजा डाली और मुसलमानों पर एक ऐसा अज़ाब आया के मुसलमान फिर उरूज पर आ नहीं पाया।
नोट :-
यह हमारे लिए इबरत की तारीख़ है क्योंकि आज हम तालीम (Education) में तो आगे आने की कोशिश कर रहें है लेकिन उस तालीम से दीन की क्या ख़िदमत अंजाम दे ,वो मक़सद हमने अपने ज़हन में बनाया ही नहीं लेकिन हमें उन लोगों की तारीख भी पढ़ना चाहिये जब वो हुकमरान अल्लाह के कानून को तोड़ रहें थे तो अल्लाह ने उन्हें कैसे ज़िल्लत का शिकार कर दिया आज हम भी अल्लाह के कानून को अपनी ज़िन्दगी में शामिल नहीं कर पा रहें हैं।
हम जो तालीम हासिल कर रहें उसे अल्लाह के दीन के लिए भी लगाए इस बात पर हम मुसलमानों को गौरों फ़िक़र करना चाहिए।
Thank u for a good knowledge
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