हिन्दुस्तान की वो क़दीम मस्ज़िद जिसका रुख़ है (बैतूल - मुक़द्दस)
" मेरे अरब को आई ठंडी हवा जहां से मेरा वतन वही हैं ' मेरा वतन वही हैं "
जूनी मस्ज़िद |
अरब के लोगों का हिंदुस्तान से कारोबार का रिश्ता हज़ारों साल से रहा हैं कुछ अरब के लोग ज़मीन के रास्ते से आया करते थे और कुछ समुद्र के रास्ते से हिंदुस्तान में कारोबार किया करते थे यह बात हमे ज़्यादा देखने में आती हैं के लोग बोलते हैं के अरबी लोग दक्षिण हिंदुस्तान में ही कारोबार किया करते हैं पर यह बात मुक़म्मल तौर से दुरुस्त नही हैं जब अरब में इस्लाम का शुरू का दौर था तब भी हिंदुस्तान में अरबी मुसलमान लोगों का आना जाना था इस बात की गवाई गुजरात की जूनी मस्ज़िद देती हैं अरबी लोग का सिर्फ दक्षिण में ही नहीं हिंदुस्तान के हर हिस्से में आना जाना था |
गुजरात के शहर भावनगर के गांव घोघा में हिन्दुस्तान की लगभग 1443 साल पुरानी मस्ज़िद आज भी मौजूद हैं जिसे बेहरवाड़ा मस्ज़िद या जूनी मस्ज़िद के नाम से जानते हैं
अगर उसकी बनावट को देखे तो उसका रुख़ बैतुल-मुक़द्दस जरुशाल्म की तरफ हैं , पर इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता हैं के गुजरात से मक्का और बैतुल मुक़द्दस का रुख़ ज़्यादा मुख़्तलिफ़ नही हैं
अगर हम इस्लामिक इतिहासकारों की नज़र से देखे तो जूना मस्ज़िद का रुख़ बैतूल मक़द्दस की तरह कैसे हो गया
वो यूँ है कि अल्लाह ने पैग़म्बर मुहम्मद ( सल्ल०) हिजरत से पहले मक़ामे इब्राहिम पर खड़े हो कर नमाज़ अदा किया करते थे अगर हम मक़ामे इब्राहिम से देखे तो दोनों क़िबले की तरफ रुख़ हो जाया करता हैं पर जो हुकुम दे रखे थे उसके मुताबिक़ हिजरत के बाद भी मुहम्मद ( सल्ल०) बैतुल मुक़द्दस की तरफ ही मुँह करके नमाज़ अदा किया करते थे उसके बाद जो हुकुम मक्का की तरफ रुख करने को दिया ये हुकुम अरबी महीने रजब या शाबान सन 2 हिजरी में उतरा गया था। जो इस तरह बयान किया गया है क़ुरआन में
पहले जिस तरफ़ तुम रुख़ करते थे, उसको तो हमने सिर्फ़ ये देखने के लिये क़िबला मुक़र्रर किया था कि कौन रसूल की पैरवी करता है और कौन उलटा फिर जाता है। ये मामला था तो बड़ा सख़्त, लेकिन उन लोगों के लिये कुछ भी सख़्त साबित न हुआ, जिन्हें अल्लाह की हिदायत हासिल थी। अल्लाह तुम्हारे इस ईमान को हरगिज़ अकारथ न करेगा, यक़ीन जानो कि वो लोगों के लिये बहुत ही मेहरबान और रहमवाला है।
ये तुम्हारे मुँह का बार-बार आसमान की तरफ़ उठना हम देख रहे हैं। लो, हम उसी क़िबले की तरफ़ तुम्हें फेरे देते हैं जिसे तुम पसन्द करते हो। मस्जिदे-हराम काबा की तरफ़ रुख़ फेर दो। अब जहाँ कहीं भी तुम हो, उसी मस्जिदे-हराम की तरफ़ मुँह करके नमाज़ पढ़ा करो। (क़ुरआन, सूरह बक़रह)
ये वो असल हुक्म जो क़िबला बदलने के बारे में दिया गया हैं
इस बात से यह साफ़ ज़ाहिर हो जाता है के यह जूनी मस्ज़िद उसी वक़्त की बनी होगी जब अल्लाह ने यही हुकुम था के बैतुल मुक़द्दस की ही तरफ रुख करके नमाज़ पढ़ा करों
अरबी शिलालेख |
इस मस्जिद की तामीर बहुत ही पुरानी हैं मस्जिद को (610 - 623 ई०) के दौर का बना हुआ माना जाता हैं मस्ज़िद में एक साथ 25 लोग नमाज़ अदा कर सकते है इसमे 12 पिलर्स है जिससे मस्जिद की छत टिकी हुई है इस क़दीम मस्ज़िद में सबसे पुराना अरबी शिलालेख आज भी मौजूद हैं , मस्ज़िद के मेहराब पर अरबी में नक्काशी उसी दौर की हैं पर इस बात का अभी तक नही पता चला के वो कौनसे सहाबा थे जो उस वक़्त हिंदुस्तान आये थे। क्योंकि केरल की जो मस्ज़िद हैं चेराना जुमा मस्ज़िद उसके बारे में बहुत ज़्यादा मालूमात है अभी भी हमारे इल्म और किताबों में मौजूद है जिसे (625 ई०) की बनी हुई माना जाता हैं
लेकिन जूना मस्ज़िद के बारे में मुक़म्मल तौर से बात वाज़े नही हुई हैं के इसका क़िबला मक्का है या बैतूल मक़द्दस हैं क्योंकि उस वक़्त क़िबला का रुख़ देखने के लिए कोई चीज़ मयस्सर ना थी हो सकता है के ये मस्ज़िद हिजरत के बाद ही बनी हो और इसका किबला मक्का ही हो । पुरातात्विक विभाग का कहना हैं के ये मस्जिद हिजरत से पहले कि ही बनी हुई हैं इसका वक़्त 610 से 622 ई का बताया जाता है
Good wo mashaAllah
ReplyDeleteJazakallah khair Bhai
DeleteGood work mashaAllah
ReplyDeleteMashaAllah. you have revealed a almost hidden truth. it proves that Islam came to india much before Muhammad bin Qasim. there was a good trade between Arab and India. Possibly someone accepted Islam from here and not propagate but also constructed masjid.
ReplyDeleteBeshak aapne Durst farmaya jazakallah Khair janab
DeleteExcellent work Bhai.. MashaAllah
ReplyDeleteJazakaallah khair
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