अहमद शाह अब्दाली दुर्रानी | HISTORYMEANING

अहमद शाह अब्दाली दुर्रानी

 अहमद शाह अब्दाली दुर्रानी


अहमद शाह अब्दाली को हिंदुस्तान में एक बहुत बडे युद्ध के लिए भी जाना जाता हैं


वो युद्ध (14 जनवरी 1761 ई०) को मध्यकालीन भारत का सबसे बड़ा युद्ध भी माना जाता हैं जिसमें एक साम्राज्य का ख़ात्मा कर दिया गया था उस समय ऐसा कभी नही हुआ था के एक साम्राज्य का एक ही जंग में ख़ात्मा हो गया हो  और वो उसके बाद कभी भी सही तरह से  सर उठा नही पाया हो।



अहमद शाह अब्दाली दुर्रानी



अहमद शाह अब्दाली दुर्रानी


जब अफ़ग़ानिस्तान अलग-अलग प्रान्तों में बटा हुआ था तब अहमद दुर्रानी को  कंधार का शाह चुना गया था उनको दरबारी लोगों की पूरी सहमति से चुना था पर जब अहमद दुर्रानी को शाह चुना गया तो उनकी उम्र 25 वर्ष बताई जाती हैं वो कंधार अहमद शाह अब्दाली के नाम से शासन करने लगे 


अफ़ग़ानिस्तान की आम जनता अहमद शाह को बाबा ए अफ़ग़ानिस्तान  के नाम से भी बुलाती है क्योंकि वो ही शाह थे जिन्होंने अफ़ग़ानिस्तान को अलग  हुए प्रान्तों को समझा कर और आपसी  लड़ाइयों को ख़त्म करके एक साथ जोड़ा था और अपनी  सीमाओ को 20 लाख वर्ग मीटर  में फैला लिया था उन्होंने अपनी जनता को एक लग पहचान दी थी  और आज़ाद देश भी दिया आज हम अब्दाली के  एकत्रित किया हुऐ देश को अफ़ग़ानिस्तान के नाम से जानते हैं



अफ़ग़ान साम्राज्य



 जब  दिल्ली पर आई मराठों की हुक़ूमत


जब मुग़लों  की सत्ता  कमज़ोर हो गई थीं और उनकी ये लापरवाही थी जो उनको हुक़ूमत में कमज़ोर कर रही थी  क्योंकि उनके अन्दर जंगजू बादशाह ना होकर आरामतलब बादशाह बनने लग गए थे  इसी कारण से मुग़लों की सत्ता कमज़ोर ही नही  बल्कि ख़त्म होने की कगार पर भी आ  गई थी तब इन हालात में ( शाह वलीउल्लाह देहलवी साहब ) ने एक ख़त (पत्र) लिखा था जिमे लिखा था के मराठाओं की हुक़ूमत के बढ़ते हुए प्रभाव को रोका जाये और रोकने के लिए  हिंदुस्तान में आमंत्रित भी किया गया था अहमद शाह अब्दाली 40 हज़ार की फौज लेकर हिंदुस्तान के लिए रवाना हुआ बाकी की फौज शुजाउद्दौला, नजीबुद्दौला और हिन्द के अफ़ग़ानों  की फौज 40 हज़ार के क़रीब थी।



 पानीपत का तृतीय युद्ध


यह युद्ध सीधे मराठाओं और अफ़ग़ानों के बीच हुआ था  अफ़ग़ानों का नेतत्व अहमद शाह अब्दाली कर रहे थे और दूसरी तरफ मराठाओं का नेतृत्व सदा शिवराव भाऊ कर रहा था। यह युद्ध सुबह 8:00 बजे शुरू हुआ था और इसका निर्णय एक ही दिन में निकल गया था इसमे अफ़ग़ानों की फ़ौज मराठाओं पर भारी पड़ी सदा शिवराव भाऊ को मार डाला गया और सहायक सेनापति को भी मार दिया सिंधिया और नाना फडणवीस इस युद्ध से भाग निकले थे, क्यों भागे थे इतिहासकार इसकी सही पुष्टि अभी तक नही कर पाये हैं इस युद्ध की हार का दुख पुणे  तक पहुँचा तो मराठाओं के पेशवा बालाजी बाजीराव को सदमा पहुँचा के उनके बेटे और मराठा सरदारों को खो दिया गया था (23 जून 1761 ई०) को डिप्रेशन के कारण पेशवा बालाजी बाजीराव की मुत्यु हो गई थी और इस तरह मराठा फिर कभी भी सही तरहा से सर ना उठा सके


इसके बाद अहमद शाह अब्दाली ने हिंदुस्तान पर शासन ना करके  मुग़लों को ही सत्ता सोप दी थी और वो आपने देश कंधार चले गए थे 

उनकी मुत्यु (16 अक्टूबर 1772 ई०) को (मारूफ़ शहर अफ़ग़ानिस्तान) में हो गई थी और उनका मक़बरा कंधार में मौजूद हैं।




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Milan Tomic

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