पेरियर ने शूद्रों के उत्थान व आत्म - सम्मान के लिए आर्टिकल 15 आन्दोलन चलाया था।
पेरियार ई.वी. रामास्वामी नायकर
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आत्म - सम्मान आन्दोलन का एक मात्र उद्देश्य हानिकारक धार्मिक धारणा को जड़ से उखाड़ फेंकना था । आत्म - सम्मान आन्दोलन और जस्टिस पार्टी के आन्दोलन की गतिविधियों में कोई मौलिक अन्तर न पाकर पेरियर ने जस्टिस पार्टी को सहयोग दिया । फलस्वरूप दिसम्बर 1926 में मथुरा का विशाल अधिवेशन इस सफलता का एक परिणाम था । वर्षों तक आत्म - सम्मान आन्दोलन और जस्टिस पार्टी एक साथ चलती रहीं । अन्त में यह निर्णय लिया गया कि पेरियर रामास्वामी नायकर ही जस्टिस पार्टी का नेतृत्व करें । सन् 1926 ई . में पेरियर जस्टिस पार्टी से जुड़ गये और वहाँ पिछड़े वर्ग की उन्नति के लिये कठिन परिश्रम किया । वर्ण व्यवस्था तथा ब्राह्मणशाही को समाप्त करने के लिये तथा शूद्रों में आत्म - सम्मान की भावना जागृत करने के लिये आपने सन् 1944 में ' द्रविड कजगम ' नामक संस्था की स्थापना की । बहुत से प्रमुख आन्दोलनों में भाग लेकर आपने जेल यात्राएं भी की थी।
हमें अपना धर्म अवश्य बदलना चाहिये
18 मार्च 1947 को दिये गये पेरियर के भाषण का हिन्दी अनुवाद - जब तक कि हम खुद को पंचनामा ( अछूत ) या आदि - द्रविडो या मुसलमानों के रूप में बदल नहीं लेते हैं तब तक इस अपमानजनक और निर्लजतापूर्ण स्थिति से कोई छुटकारा मिलता नज़र नहीं आता है । सभापति वेंकटचलम् ने इस बात को अत्यन्त स्पष्ट किया है । उन्होंने समझाया है : " जब तक कि हम मुसलमान या आदि - द्रविड नहीं बन जाते हैं , तब तक हमारी मदद करने वाला कोई नहीं है । हम शायद मुसलमान तो बन सकते हैं , लेकिन हमारे लिए आदि - द्रविड बनना असम्भव है । " यह सत्य है । हम खुद को तब तक आदि - दविड घोषित नहीं कर सकते हैं , जब तक कि हम आदि - द्रविड माता - पिता से उत्पन्न न हुये हों । हम अपनी जाति के बारे में झूठ बोलने के लिये दण्डित किये जा सकते हैं । क्योंकि हम पहले से ही जन्म ले चुके हैं , हम अब अछूतों द्वारा जन्म नहीं ले सकते हैं । यदि कोई आदि - द्रविड माता - पिता से जन्मा है , तो ब्राह्मण इसे दोगल के रूप में वर्णित कर सकता है । हालांकि , एक मुसलमान बनना आसान होगा । बस इतना ही काफी होगा यदि एक मौलाना क़लमा सुना दे और धर्म - परिवर्तन करने वाले से
( لا اله الا الله محمد رسول الله. )
( अल्लाह के सिवा कोई ईश्वर नहीं है, मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।)
पढ़ वादे तो धर्म - परिवर्तन पूरा हो जाता है । हम लगभग ऐसे किनारे पर आ गये हैं ,जहाँ और कोई अन्य रास्ता नहीं है ।
दोस्तो ! शूद्र होना हमारी यह बीमारी एक बहुत बड़ी भयंकर बीमारी है यह कैन्सर के समान है । एक बहुत पुरानी बीमारी है । इसकी केवल एक ही औषधि है और वह है इस्लाम । और कोई औषधि नहीं है । अन्यथा हमें तकलीफ झेलनी पड़ेगी , बीमारी को भुलाने या दबाने के लिये नींद की गोलियाँ लेनी पड़ेंगी और बदबूदार लाशों के रूप में जीवन व्यतीत करना पड़ेगा । इस बीमारी से मुक्ति पाने के लिये , उठ खड़े हो , और सम्मानीय इन्सानों की तरह चलो , इस्लाम ही एकमात्र रास्ता है
केरल में ( ट्रावनकोर - कोचीन )
केरल ट्रावनकोर - कोचीन |
मैंने सन् 1924 से 1934 तक दस वर्षों से भी अधिक तक प्रचार किया था कि अछूतों को हिन्दू धर्म छोड़ देना चाहिये । विचार को स्वीकार करते हुए बहुत से सम्मेलन हुए थे और इस निष्कर्ष के लिये प्रस्ताव पारित हुए थे । मलयाली क्षेत्रों में दो से तीन हजार लोगों ने इस्लाम को ग्रहण किया था और हिन्दू धर्म द्वारा उन पर लगाये गये अपमान को धो डाला था । उसी समय ही , हिन्दू समाज में अनुचित - असमानता को स्पष्ट अनुभव करते हुए , सरकार और समाज द्वारा इन अछूतों की स्थिति में सुधार के लिये अनेक कार्य किये गये थे । त्रिवेन्द्रम मन्दिर प्रवेश और कोचीन के कालेजों में और नौकरियों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की घोषणा और सुधार के लिये प्रचार धर्मान्तरण की धमकी का ही परिणाम हैं ।
एक महत्वपूर्ण व्यक्ति ने सम्पूर्ण योजना की आलोचना करते हुए पेरियार को पत्र लिखा था , जिसके लिए पेरियार द्वारा जवाब भेजा गया था ।
प्रिय मित्र ,
मैंने 26 मार्च , 1947 का आपका पत्र पढ़ा । आपके नाम और पते का ज़िक्र न करने के लिये मुझे क्षमा करें । मुझे आपकी अपमानजनक भाषा की परवाह नहीं है । मैं ब्राह्मणवाद से नहीं डरता हूँ । मैं ब्राह्मणवाद के शिकंजों में घसीटे जाने के लिये और इस आधुनिक युग में एक शूद्र के रूप में अंकित किये जाने के लिये शर्मिन्द हूँ । यदि आप भी शूद्रपन से प्रसन्न नहीं हैं तो मुझे यकीन है कि आप भी घोर शर्मिन्दगी महसूस करेंगे । मेरे लिए यह एक जैसा है कि भले ही लोग नोआखली या बंगाल या पंजाब में मरे हैं । उन जगहों के गैर - मुस्लिम लोग ऐसे लोग हैं जो अपनी शूद्र अवस्था के लिये शर्मिन्दा नहीं थे । हमने शूद्र के रूप में जन्म लिया है यह चिन्तित होने की कोई बात नहीं है । नीच लोगों की तरह जीने की बजाय सम्भवतः मर जाना ही बेहतर है । यहाँ तक कि मर कर शूद्रपन को नष्ट करना भी बेहतर है । मैं इस्लाम को ग्रहण करने के लिए मैं किसको उपयुक्त समझता हूँ । केवल वे जो शूद्र होने के कारण शर्मिन्दा हैं और जो इस शर्म से पीछा छुड़ाना चाहते है उन्हीं को इस्लाम धर्म अपनाने के लिये आमंत्रित किया गया है । इस्लाम या यहाँ तक कि किसी अन्य धर्म को भी जो वास्तविक राहत देगा ग्रहण करने के लिये उनका आह्वान किया गया है । अन्य लोग जिन्हें अपने शूद्रपन की परवाह नहीं हैं , उन्हें मेरी अपील की तरफ कोई ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है । यदि कोई अन्य उत्तम मार्ग है तो उसे लोगों के सामने रखा जाना चाहिये । लेकिन निरर्थक वेदान्त की बातें करके लोगों को भ्रम में मत डालो और उन्हें अपमान से मुक्ति पाने से मत रोको ।
इश्क़ हो जाए किसी से कोई चारा तो नहीं
सिर्फ मुस्लिम का मुहम्मद ( ﷺ ) पे इज़ारा तो नहीं
( के.एस.रामकृष्ण राव )
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