कुम्भलगढ़ दुर्ग का इतिहास
कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था यह दुर्ग समुद्रतल से करीब 1100 मीटर कि ऊचाईं पर स्थित है ।
कुंभलगढ दुर्ग
यह किला राजस्थान के राजसमन्द जिले में स्थित है । इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने सन 13 मई 1433.ई इसका निर्माण शुरू कराया था और पूर्ण रूप से 1458.ई में इसका काम पूरा हुआ। इस किले को ' अजयगढ ' कहा जाता था क्योंकि इस किले पर विजय प्राप्त करना दुष्कर कार्य था । इसके चारों ओर एक बडी दीवार बनी हुई है जो चीन की दीवार के बाद विश्व कि दूसरी सबसे बडी दीवार है । इस किले की दीवारे लगभग 36 किमी लम्बी है और यह किला यूनेस्को की सूची में सम्मिलित है । कुम्भलगढ किले को मेवाड की आँख कहते है यह दुर्ग कई घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है जिससे यह प्राकृतिक सुरक्षात्मक आधार पाकर अजय रहा । इस दुर्ग में ऊँचे स्थानों पर महल , मंदिर व आवासीय इमारते बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया । वहीं ढलान वाले भागो का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथासंभव स्वाबलंबी बनाया गया । इस दुर्ग के भीतर एक और गढ़ है जिसे कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है । यह गढ़ सात विशाल द्वारों व सुद्रढ़ प्राचीरों से सुरक्षित है । इस गढ़ के शीर्ष भाग में बादल महल है व कुम्भा महल सबसे ऊपर .
कुंभलगढ़ की दीवार
इस किले कि दीवार के सम्बन्ध वहां के निवानियों ने एक रोचक कहानी बना रखी है यह कितनी सच्ची या कितनी काल्पनिक है इसके सम्बन्ध में केहना मुश्किल हैं।
जब इस दीवार के निर्माण का काम शुरू हुआ तो यह करीबन 10 बार गिरी गई थी राजा कुम्भा परेशान थे,
तो एक साधु महंत ने कहां के यह जगह बली चाहती हैं
पर जानवर की नहीं आदमी की और स्वयं उस आदमी
की ईच्छा भी होनी चाहिएं जब कोई बात ढूंढने पर नहीं
मिला तो महंत ने स्वयं ख़ुद का बलिदान दे डाला और
उस साधु महंत की समाधि मुख्य द्वार पर स्थित हैं।
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ReplyDeleteThank you very much
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