Vishwanath Temple , Golconda Jama mosque History
ऐतिहासिक तथ्यों और वृत्तान्तों को उजागर करके जिनसे भली भांति स्पष्ट हो जाता है कि इतिहास को मनमाने ढंग से तोड़ा - मरोड़ा गया है
साधारणतया इतिहासकार इसका बहुत उल्लेख करते हैं कि अहमदाबाद में नागर सेठ के बनवाए हुए चिन्तामणि मन्दिर को ध्वस्त किया गया , परन्तु इस वास्तविकता पर पर्दा डाल देते हैं कि उसी औरंगजेब ने उसी नागर सेठ के बनवाए हुए शत्रुन्जया आर आबू मन्दिरों को काफ़ी बड़ी जागीरें प्रदान की थी।
नि : संदेह इतिहास से यह प्रमाणित होता है कि औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मन्दिर और गोलकुंडा की जामा मस्ज़िद को ढा देने का आदेश क्यों दिया था , परन्तु इसका कारण कुछ और ही था ।
विश्वनाथ मन्दिर के सिलसिले में घटनाक्रम -
यह बयान किया जाता है कि जब औरंगज़ेब बंगाल जाते हुए बनारस के पास से गुज़र रहा था , तो उसके काफ़िले में शामिल हिन्दू राजाओं ने बादशाह से निवेदन किया कि वहां क़ाफ़िला एक दिन ठहर जाए तो उनकी रानियां बनारस जा कर गंगा नदी में स्नान कर लेंगी और विश्वनाथ जी के मन्दिर में श्रद्धा सुमन भी अर्पित कर आएँगी । औरंगजेब ने तुरंत ही यह निवेदन स्वीकार कर लिया और क़ाफ़िले के पड़ाव से बनारस तक पांच मील के रास्ते पर फ़ौजी पहरा बैठा दिया । रानियां पालकियों में सवार होकर गईं और स्नान एवं पूजा के बाद वापस आ गईं , परन्तु एक रानी ( कच्छ की महारानी) वापस नहीं आई , तो उनकी बड़ी तलाश हुई , लेकिन पता नहीं चल सका । जब औरंगजेब को मालूम हुआ तो उसे बहुत गुस्सा आया और उसने अपने फ़ौज के बड़े - बड़े अफ़सरों को तलाश के लिए भेजा । आखिर में उन अफ़सरों ने देखा कि गणेश की मूर्ति जो दीवार में जड़ी हुई है , हिलती है । उन्होंने मूर्ति हटवा कर देखा तो तहख़ाने की सीढ़ी मिली और गुमशुदा रानी उसी में पड़ी रो रही थी । उसकी इज्जत भी लूटी गई थी और उसके आभूषण भी छीन लिए गए थे
यह तहख़ाना विश्वनाथ जी की मूर्ति के ठीक नीचे था । राजाओं ने इस हरकत पर अपनी नाराजगी जताई और विरोध प्रकट किया । चूंकि यह बहुत घिनौना अपराध था , इसलिए उन्होंने कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने की मांग की । उनकी मांग पर औरंगज़ेब ने आदेश दिया कि चूंकि पवित्र - स्थल को अपवित्र किया जा चुका है । अत : विश्वनाथ जी की मूर्ति को कहीं और ले जा कर स्थापित कर दिया जाए और मन्दिर को गिरा कर ज़मीन को बराबर कर दिया जाय और महंत को गिरफ़्तार कर लिया जाए ।
डाक्टर पट्टाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ' द फ़ेदर्स एण्ड द स्टोन्स ' में इस घटना को दस्तावेज़ों के आधार पर प्रमाणित किया है । पटना म्यूज़ियम के पूर्व क्यूरेटर डा . पी ० एल ० गुप्ता ने भी इस घटना की पुष्टि की है ।
गोलकुण्डा की जामा मस्ज़िद की घटना -
गोलकुंडा क़िला
यह है कि वहां के राजा अबुल हसन क़ुतुब शाह जो तानाशाह के नाम से प्रसिद्ध थे , रियासत की मालगुज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली का हिस्सा नहीं भेजते थे । कुछ ही वर्षों में यह रक़म करोड़ों की हो गई । तानाशाह ने यह खज़ाना एक जगह ज़मीन में गाड़ कर उस पर मस्जिद बनवा दी । जब औरंगज़ेब को इसका पता चला तो उसने आदेश दे दिया कि यह मस्जिद ( शहीद ) गिरा दी जाए । अत : गड़ा हुआ खज़ाना निकाल कर उसे जन - कल्याण के कामों में खर्च किया गया । ये दोनों मिसालें यह साबित करने के लिए काफ़ी हैं कि औरंगजेब न्याय के मामले में मन्दिर और मस्ज़िद में कोई फ़र्क नहीं समझते थे।
“ दुर्भाग्य से मध्यकाल और आधुनिक काल के भारतीय इतिहास की घटनाओं एवं चरित्रों को इस प्रकार तोड़ - मरोड़ कर मनगदत अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है कि झूठ ही ईश्वरीय आदेश की सच्चाई की तरह स्वीकार किया जाने लगा , और उन लोगों को दोषी ठहराया जाने लगा जो तथ्य और मनगढंत बातों में अन्तर करते हैं । आज भी साम्प्रदायिक एवं स्वार्थी तत्व इतिहास को तोड़ने - मरोड़ने और उसे ग़लत रंग देने में लगे हुए हैं । "
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