एक ऐसा महायुद्ध जिसे इतिहास के पन्नों में कहीं भुला दिया गया।
आर्यों ( Aryans ) के मूल निवासियों के कुछ साक्ष्य 2500 के लगभग का है . ... 1500 के लगभग मेसोपोटामिया की सभ्यता को नष्ट करनेवाले लोग उन्हीं आर्य के पूर्वज थे जिन्होंने भारत के द्रविड़ों को हराया और वेदों की रचना की आर्यों की एक दूसरी शाखा भी थी जो फारस के उपजाऊ मैदानों में पाई जाती थी . उन्हें इंडो - ईरानियन कहा जाता था .
यह जानना भी आवश्यक है कि ये दलित और पिछड़े आखिर कौन हैं ? इतिहास साक्षी है कि इस देश के मूल निवासी द्रविड़ जाति के लोग थे जो बहुत ही सभ्य और शांतिप्रिय थे । आज से लगभग पाँच या छः हज़ार वर्ष पूर्व आर्य लोग भारत में आए और उन्होंने यहाँ के मूलनिवासी द्रविड़ों पर हमले किये । फलस्वरूप आर्य और द्रविड़ दो संस्कृतियों में भीषण युद्ध हुआ आर्य लोग बहुत चालाक थे । अतः छल से , कपट से और फूट की नीति से द्रविड़ों को हराकर वे इस देश के मालिक बन बैठे ।
इस युद्ध में द्रविडों द्वारा निभाई गई भूमिका की दृष्टि से द्रविडों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है । प्रथम श्रेणी में वे आते हैं जिन्होंने इस युद्ध में बहादुरी के साथ लड़ते हुए अन्त तक आर्यों के दाँत खट्टे किए । उनसे आर्य लोग बहुत घबराते थे । आज के शेड्यूल्ड कास्ट लोग उसी श्रेणी के लोग हैं । दूसरी श्रेणी में वे द्रविड़ आते हैं जो इस युद्ध में आरम्भ से ही तटस्थ रहे या युद्ध में भाग लेने के थोड़े समय बाद ही युद्ध से अपने आप को अलग कर लिया और यहाँ तक कि यह आर्यों का साथ देने लगे और आर्यों के इशारे पर अपने आर्य आकाओं को खुश रखने के लिए अपने ही भाईयों पर जुल्म ढाने लगे । हिन्दुओं का आज का पिछड़ा वर्ग ( O.B.C. ) वही लोग हैं । दूसरी तरफ़ आर्यों ने विजय प्राप्त कर लेने के बाद युद्ध में भाग लेने वाले और न भाग लेने वाले दोनों श्रेणी के द्रविड़ों को शूद्र और अतिशूद्र घोषित कर उनका काम आर्यों की सेवा करना भी निश्चित कर दिया । केवल इतना फर्क किया कि जिन द्रविडों ने युद्ध में भाग नहीं लिया था उन्हें सछूत शूद्र घोषित कर शान्ति से रहने दिया । कोली , माली , धुना , जुलाहे , कहार , डोम , आदि ( O.B.C. ) इसी श्रेणी में आते हैं ।
लेकिन जिन द्रविडों ने इस युद्ध में बढ़ - चढ़कर हिस्सा लिया और अपनी शूर - वीरता का परिचय दिया उन मार्शल लोगों को अछूत - शूद्र घोषित कर दिया और इसके साथ ही उन्हें इतनी बुरी तरह कुचल दिया जिससे कि वे लोग हजारों सालों तक सिर भी न उठा सकें । उनके कारोबार ठप्प कर दिये , उन्हें गाँव के बाहर रहने के लिए मजबूर कर दिया और इन्हें इतना बेबस कर दिया कि उन्हें जीवित रहने के लिए मृत - पशुओं का मांस खाना पड़ा । आर्यों ने उन्हें अपना पाखाना उठवाने , मृत पशुओं को उठाने आदि गन्दे काम करना भी जबरन सौंप दिया जिसे उस समय उन्हें मजबूरी में उठाना शुरू कर दिया और आज तो वे खुशी से उठा रहें है । जाटव , भंगी , चमार , महार , खटिक , धानक आदि इसी श्रेणी के लोग हैं । आर्यों ने षडयंत्र के तहत इन मार्शल लोगों का उन्हीं के भाई सछूत शूद्रों (O.B.C ) के हाथों गाँव - गाँव में पिटवाना शुरू कर दिया ।
इस मार्शल श्रेणी के लोगों में से एक बहुत बड़ा तीसरा वर्ग बना जिसने यह तय कर लिया कि हम युद्ध में तो हार गए लेकिन फिर भी वे इन आर्यों की गुलामी स्वीकार नहीं करेंगे और न ही इनके गुलामी के अन्दर रहेंगे । वे लोग घोर जंगलों में निकल गए और वहीं रहने लगे । नागा , भील , संथाल , जरायू आदि जंगली जातियाँ इसी वर्ग में आती हैं । जो आज भी आर्यों की किसी भी सरकार को दिल से स्वीकार नहीं करते हैं और आज भी स्वतंत्रतापूर्वक जंगलों में ही रहना पसंद करते हैं ।
एक शायर ने सच ही लिखा हैं...
जो कौम अपना इतिहास ( तारीख़ ) को भुला देती उसे दुनिया भी भुला देती हैं....
बहुत ही अहम जानकारी है । काश कि लोग अपना इतिहास जान लें।
ReplyDeleteShukriya janab
ReplyDelete👍👍
ReplyDeleteShukriya
DeleteVery useful information .....
ReplyDeleteShukriya
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