सुल्तान मुहम्मद फतेह | HISTORYMEANING

सुल्तान मुहम्मद फतेह

3 मई 1481 ई०
मुहम्मद_फतेह_की_वफात_हुई_थी 

एक हदीस में हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया:- 
"तुमलोग एक रोज़ क़ुस्तुन्तुनिया फ़तह कर लोगे, पस बेहतरीन अमीर उसका अमीर होगा और वो लश्कर बेहतरीन लश्कर होगा" 
यही वो फ़रमान-ए-आलीशान था के जिसने हर मुसलमान को फ़तह ए क़ुस्तुन्तुनिया के जज़्बे से सरशार रखा ।

रसूल अल्लाह ﷺ की फ़तह क़ुस्तुंतुनिया की पेशनगोई को पूरा करने का ख़्वाब सभी मुसलमान हुक्मरानों ने देखा लेकिन वो 21 साला सुलतान मुहम्मद फातेह ही थे जिन्हें ये ख़ुशनसीबी हासिल हुई थी।

क़ुस्तुंतुनिया या कांस्टैंटिनोपुल यह बासफ़ोरस और मारमरा के दहाने पर मौजूद है। यह एक तारीख़ी शहर है जो रोमन, बाइजेंटाइन और लैतिन रियासतों की राजधानी थी और आज तुर्की में है जिसे आज इस्ताम्बुल कहा जाता है और आज भी दुनिया का अज़ीम शहर माना जाता है।
कुस्तुन्तुनिया की स्थापना रोमन सम्राट् कांस्टैंटाइन ने 328 ई. में प्राचीन नगर बाईज़ैंटियम को विस्तृत रूप देकर की थी। रोमन साम्राज्य की राजधानी के तौर पर इसकी शुरुआत 11 मई 330 ई. को हुई थी। कहते हैं कि जब यूनानी रियासत फैल रही थी तो प्राचीन यूनान के नायक बाइज़ैस ने मेगारा नगर को बाइज़ैन्टियम के रूप में स्थापित किया था। यह बात 667 ईसापूर्व की है। उसके बाद जब कॉंस्टैन्टीन राजा आए तो इसका नाम कॉंस्टैंटिनोपल रख दिया गया जिसे हम कुस्तुन्तुनिया के रूप में पढ़ते आए हैं। यही आज का इस्ताम्बुल शहर है।

उस वक़्त ये दुनिया का अज़ीम तरीन शहर था। ये शहर तहज़ीब का मरकज़ होने के साथ साथ दौलत और बुलंदी की अलामत भी था दुनिया के बड़े बड़े बादशाह सिपहसालार और फ़ौजी जरनैल इस शहर को फ़तह करने के ख़्वाब लेकर इस दुनिया से रुख़सत हुए। ये शहर अपराजय मतलब न क़ाबिले तसख़ीर था। इसके तीन तरफ़ समंदर और एक तरफ़ ज़मीन थी और साथ ये ज़मीनी इलाक़ा बड़ी बड़ी सिपाहियों की फौज से भरपुर 12 से 15 मीटर ऊंची क़िले की दीवारों से घिरा हुआ था। साथ साथ इस ईलाक़े में ऐसे पहाड़ और चट्टान मौजूद थे जो किसी भी फ़ौजी मुहिम को नाकाम बना देते।

इस शहर पर सैकड़ों हमले हुए इस हमले में सल्तनत ए फ़ारस के अज़ीम ओ शान बादशाह भी शामिल थे तो दूसरी तरफ़ वहशी और दरन्दनगी से भरपूर क़बीलों के जंगजू भी और रूसियों ने भी इस शहर पर हमला कर के अपनीं क़िस्मत आज़माई इधर ईमान से लबरेज़ मुसलमान जाँ निसार भी थे जिन्होंने हमला किया।
मुसलमानों ने यहां पहला हमला हज़रत अमीर माविया रज़ि के दौर-ए-हुकूमत में किया जो के नाकाम रहा। इसके बाद ख़लीफ़ा हारून रशीद के दौर में इस अज़ीम शहर पर मुसलमानो ने ऐसा हमला के सल्तनत ए रोम की बुनियादें तक हिल गईं लेकिन ये शहर फ़तह न हो सका।
इसके बाद एक के बाद एक मुसलमान हुक्मरानों ने हुज़ूर ﷺ की बशारत को पूरा करने की कोशिश की यहां तक की सलजोकी हुक्मरान अलीब अरसलान ने रोमियों को इबरत्नाक शिकस्त दी और शहंशाह ए क़ुस्तुन्तुनिया को गिरफ़्तार कर लिया मगर फिर भी ये शहर फ़तह न हो सका।

फिर सलजोकी हुक्मरानों की जगह एक नई सल्तनत वजूद में आयी जिसकी बुनियाद दर दर भटकने वाले चंद चरवाहों ने रखी थी। इन चरवाहों के ज़हन ओ गुमान में भी ये बात न होगी के इनके आने वाली नस्लें दुनियावी और दीनी लिहाज़ से इतने बड़े मक़ाम पर पहुंचेंगी। सुल्तान मुराद सानी की वफ़ात के बाद उनके बेटे मुहम्मद सानी जिन्हें तारीख़ सुल्तान मुहम्मद सानी अल फ़ातेह के नाम से याद करती है वो तख़्त नशीन हुए। सुल्तान मुराद ने अपने बेटे मुहम्मद सानी की तालीम और तरबियत पर निहायत जलील उल क़दर बुज़रगवार मुक़र्रर किये जो एक शफ़ीक़ उस्ताद की तरह हमेशा इनकी रहनुमाई फ़रमाते और ज़रूरत पड़ने पर डंडे से इनकी पिटाई भी करते। वैसे तो फ़तह क़ुस्तुन्तुनिया आक़ा ﷺ के फ़रमान ए आलीशान के बाद हर मुसलमान हुक्मरान का ख़्वाब रहा था और कइयों ने कोशिश भी की थी लेकिन ये अज़ीम कामयाबी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इस इक्कीस साला नौजवान सुल्तान मुहम्मद सानी के नसीब में लिखी थी।

हुआ यूं के सुल्तान मुहम्मद सानी के तख़्त संभालते ही सुलतान ए क़ुस्तुन्तुनिया ने एक शख़्स को सुल्तान मुहम्मद सानी से बग़ावत के लिए खड़ा कर दिया। इसका जवाब सुल्तान मुहम्मद ने क़ुस्तुन्तुनिया पर हमले से दिया। इस हमले से पहले सुल्तान मुहम्मद ने ज़रूरी तैयारियां कीं, ज़मीनी फ़ौज की एक बड़ी तादाद जमा की और इन्हें हर तरह की ट्रेनिंग दी।
क्योंके क़ुस्तुन्तुनिया तीन तरफ़ से पानी से घिरा हुआ था इस लिए समन्द्री जहाज़ और समन्द्री फ़ौज (नेवी) का इंतज़ाम भी किया गया और उनको भी शदीद ट्रेनिंग दी गयी। इसके इलावा सुल्तान ने हंगरी से तोप बनाने वाले कारीगर बुलवाए  और निहायत बड़ी बड़ी तोपें बनवाईं।
इधर सुल्तान ने बासफ़ोरस (Bosporus) के मग़रीबी किनारे पर एक क़िला तामीर करवाया जिसने शहंशाह ए क़ुस्तुन्तुनिया को परेशानी में मुब्तला कर दिया और वो सुल्तान के इरादे भांप गया। इस शहंशाह (जिसका नाम भी क़ुस्तनितीन था) ने सुल्तान मुहम्मद को बेशक़ीमती हेरे जवाहरात और बहुत सारी रक़म की पेशकश की और इस हमले को रोकने की फ़रियाद की।

सुल्तान मुहम्मद सानी की जानिब से कोई जवाब न मिलने पर यूरोप से मदद हासिल करना चाही और रोम के पोप के समूह के सामने हाज़िर हुआ वो पोप का समूह कैथोलिक फ़िरके के ईसाईयों के सरबराह थे और क़ुस्तुन्तुनिया के लोग ऑर्थोडॉक्स ईसाई फ़िरके के मानने वाले थे। शहंशाह ए क़ुस्तुन्तुनिया की इस हरकत पर वहां की अवाम ने बवाल मचा दिया। और कुछ ने तो ये भी कहा के हम कैथोलिक पादरियों की जगह तुर्कों की रियासत क़ुबूल करना मुनासिब समझते हैं। दूसरी तरफ़ यूरोप की हुकुमतों ने भी इस बादशाह की कोई ख़ास मदद नही की और ये नाकाम वापस लौटा।

सुल्तान मोहम्मद सानी अपनी दूसरी रियासतों से सुलह करने के बाद क़ुस्तुन्तुनिया पर हमले के लिए रवाना हुए और 6 अप्रेल 1453 को क़ुस्तुन्तुनिया पहुंचे इस फ़ौज का जज़्बा ए ईमानी बहुत बुलंद था। सुल्तान और उनकी फ़ौज ये अज़्म लेकर निकले थे के या तो क़ुस्तुन्तुनिया को फ़तह करेंगे या फिर क़ुस्तुन्तुनिया में ही हमारी क़ब्र बनेगी।
फ़ौज को मुख़्तलिफ़ यूनिट में बांट कर शहर का मुहासरा कर लिया गया। शहर के एतराफ़ में बड़ी बड़ी तोपें लगा दी गईं जो दिन रात आग उगलने लगीं।
दूसरी तरफ़ अहले क़ुस्तुन्तुनिया ने भी अपने बचाव में कोई कसर न छोड़ी और... 

शहर के सख़्त मुहासरे के बावजूद रियासत क़ुस्तुंतुनिया यूरोप से बराबर मदद पहुंच रही थी जिस्की वजह थी ज़ीरी शाख़ जिसे गोल्डन हॉर्न (Golden Horn) कहा जाता है जो के पानी का एक रास्ता है। 
ये ऐसी जगह है जहाँ उस्मानियों की पहुंच नही थी इस में दाख़िल होने का सिर्फ़ एक ही रास्ता था जिस के मुहाने पर बड़ी बड़ी जंजीरें लगी हुई थीं। उस्मानी नेवी जान तोड़ कोशिशों के बावजूद यूरोप के जहाज़ों की आमद ओ रफ़त नही रोक पा रही थे। इसी वजह से इस शहर को फ़तह करना अब नामुमकिन से लगने लगा था। मगर जिसकी पेशनगोई आक़ा ﷺ ने की हो और उसका वक़्त आ गया हो तो उस पेशनगोई को तो पूरा होना ही था। 

एक दिन अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने सुल्तान मुहम्मद सानी के दिमाग़ में ऐसी तरकीब डाली के जिसने अपने वक़्त के सबसे बड़े मौजज़े को जन्म दिया। तुर्की के एक शहर के बंदरगाह से गोल्डन हॉर्न का ज़मीनी रास्ता 3 मील का था। सुल्तान ने हिकमत ए अमली बनाई के किसी तरह अपने जहाज़ों को उस बंदरगाह के ज़रिए गोल्डन हॉर्न में उतार दिया जाए। तरकीब तो कमाल की थी लेकिन वो रास्ता ज़मीनी दुश्गवार था रास्ते में छोटी छोटी  नुकीले चट्टाने भी थीं। फिर भी ईमान की दौलत से लबरेज़ इस्लामी जाँ निसारों की उस्मानी फ़ौज ने पानी के जहाज़ों को घसीटते हुए 3 मील के मुश्किल रास्तों को आसान बना दिया और रात की तारीकी में लकड़ी के बड़े बड़े तख़्तों को तेल और चर्बी से चिकना कर के इसपर से घसीटते हुए पानी के जहाज़ों को गुज़ारा गया। ये तमाम काम सुल्तान मुहम्मद फ़ातेह की निगरानी में हुआ।

रियासत ए क़ुस्तुंतुनिया जो ख़ुद को नाक़ाबिल ए तसख़ीर (अपराजय) समझ रहा था वहां के लोग सुबह सो कर उठे तो गोल्डन हॉर्न के साहिलों पर रियासत ए उस्मानियाँ के जहाज़ों ने डेरा डाला हुआ था। ये एक ऐसा कारनामा था जिसने सारी दुनिया को हैरत में डाल दिया था एक ऐसा कारनामा जिसने सुल्तान मुहम्मद फ़ातेह को वो सआदत नसीब फ़रमाई जो इनके अजदाद समेत दुनिया के किसी फ़ातेह को हासिल नही हुई थी। क़ुस्तुंतुनिया में एक कहावत थी के क़ुस्तुंतुनिया तभी फ़तह होगा जब पानी के जहाज़ पहाड़ों पर चलेंगे इसका मतलब ये था के क़ुस्तुंतुनिया को वो लोग कभी न हारने वाला इलाक़ा समझते थे। 
लेकिन जब उस्मानी बेड़े गोल्डन हॉर्न के साहिलों पर आकर जम गए तो वहां के लोगों को इस मंज़र ने काफ़ी हद तक डिप्रेशन में डाल दिया। अब सुल्तान मुहम्मद फ़ातेह ने और तेज़ी के साथ हमले शुरू किये। इस्लामी जाँ निसार न तो ख़ुद सोते और न ही क़ुस्तुंतुनिया वालों को सोने देते उनकी तोपें दिन रात हमेशा आग उगल रही थीं। आख़िरकार सुल्तान मुहम्मद ने एक शदीद हमले का मंसूबा बनाया और अपने लश्कर से के सामने मुन्तखिब होते हुए कहा
"के हो सकता है के हुज़ूर ﷺ ने जिस बेहतरीन लश्कर की बशारत फ़रमाई थी वो हम हों चुनाचे हमसे कोई ग़ैर इखलाक़ी काम सरज़द न हो, हम अगर शहर को फ़तह कर लें तो किसी आम शहरी, बूढ़े, औरत और बच्चे को नुक़सान न पहुंचाना और न ही किसी की इबादतगाह को तोड़ना" ।

उधर दूसरी तरफ़ शहंशाह क़ुस्तुंतुनिया ने अपनी अवाम से एक तक़रीर की के अगर मैं इस जंग में मारा जाऊं तो अपनी आख़िरी सांस तक इस शहर की हिफ़ाज़त करना और मुसलमानों के ख़िलाफ़ जान की बाज़ी लगा देना। कहा जाता है के ये एक कमाल की तक़रीर थी इस तक़रीर को सुनने वालो की आंखें नम थीं। अलविदा कहने के बाद बादशाह जंग के लिए रवाना हुआ।
बरोज़ मंगल 29 मई 1458 को ये तारीख़ी खूँ रेज़ जंग शुरू हुई जिसमें दोनो फ़ौजें जान हथेली पर रख कर लड़ीं। दोनो एक ही बात पर अटल थे फ़तह या शहादत। क़ुस्तुंतुनिया के सिपहसालार जस्टिन यानी ने इतनी बहादुरी से उस्मानियों का मुक़ाबला किया के सुल्तान मुहम्मद अल फ़ातेह ने बेसाख़्ता कहा के काश ये बहादुर शख़्स मेरी फ़ौज में होता।

एक लंबी और ख़ूँ रेज़ जंग के बाद 12 हज़ार मुसलमान शहर में दाख़िल होने में कामियाब रहे फिर सुल्तान दाख़िल हुए और दाख़िल होते ही उन्होंने सजदा ए शुक्र अदा किया। अपने सिपाहियों की तारीफ़ की और शोहदा के लिए दुआ फ़रमाई फिर अपने क़ौल के मुताबिक़ सुल्तान मुहम्मद फ़ातेह ने क़ुस्तुंतुनिया की अवाम से निहायत रहमदिलाना सुलूक किया। और इस शहर का नाम इस्लाम बोल रखा यानी इस्लाम का शहर रखा जो की बाद में इस्ताम्बुल के नाम से मशहूर हुआ।

ये इस्लामी तारीख़ का एक नाक़ाबिल ए फ़रामोश वाक़या है। सारी दुनिया के मुसलमानों ने इस फ़तह पर ख़ुशियाँ मनाईं मिठाईयां बांटी गईं और घरों को सजाया गया। इसके बाद भी सुल्तान मुहम्मद फ़ातेह ने कई शहरों और मुल्कों को फ़तह किया और सर्बिया से होते हुए हंगरी तक पर हमले किये। सुल्तान ने मुल्क फ़तह करने के इलावा मुल्क के तमाम लोगों को एक जैसी तरक़्क़ी दी। उन्होंने तालीमी इदारे तामीर करवाये, उलमा कराम की हौसला अफ़ज़ाई की और तिजारत को बढ़ावा दिया। उनके दौर को सल्तनत ए उस्मानियाँ के सुनहरे वरक़ों में शामिल किया जाता है। आप 3 मई 1481 में इस फ़ानी दुनिया से रुख़सत हुए। आपकी तदफीन क़ुस्तुंतुनिया में हुई...!!!
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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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