डॉ. भीमराव अंबेडकर का एक भाषण | HISTORYMEANING

डॉ. भीमराव अंबेडकर का एक भाषण

डॉ.भीमराव अम्बेडकर साहब का एक भाषण

बाबा साहब द्वारा इस्लाम और मुसलमानों की प्रंशसा

Dr. B.R. Ambedkar
Dr.B. R. Ambedkar


डॉ. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर


जहाँ मुसलमानों ने दलित वर्ग की कदम - कदम पर सहायता की है वहीं बाबा साहब ने भी इस्लाम धर्म और मुसलमानों की दिल खोलकर प्रंशसा की है । बाबा साहब यदि किसी धर्म को दिल से सबसे ज्यादा पसन्द करते थे तो वह केवल इस्लाम धर्म ही है । इस्लाम धर्म को अपनाने का मन बनाने की वजह से डॉ ० अम्बेडकर ने इस्लाम धर्म की प्रशंसा की है उन्होंने कहा ,ईसाई धर्म सबको ज्ञात है ।

 इस्लामी बन्धुत्व की दृढ़ता की प्रतियोगिता कोई धार्मिक सम्बन्ध के कारण तुर्कों का गठजोड़ अरबो से रहा । धर्म का संयोग मानवता के लिए बहुत प्रबल है यह बात इस्लाम भी सधार लें । आइए हम भी इस्लाम की शीतल छाया की ओर चल अन्य सामाजिक संघ नहीं कर सकता । बाबा साहब ने कहा कि तीन धर्म है इस्लाम , ईसाई और सिख धर्म जिनमें से दलित वर्ग को अपनाना है । फिर साथ ही कहते हैं कि तीनों की तुलना करने पर इस्लाम दलित वर्ग को वह सब कुछ देता है हुआ प्रतीत होता है जिसकी उसको आवश्यकता है । उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट हो गया है कि बाबा साहब डॉ ० अम्बेडकर इस्लाम धर्म को बड़े ही श्रद्धाभाव से देखते थे ।


महापरिषद भाषण फोटो 31 जुलाई 1936

डॉ.अम्बेडकर ने जो 13 अक्टूबर 1935 ई 0 को धर्मपरिवर्तन की घोषणा की थी उसके बाद अपने लोगों को धर्म परिवर्तन के लिये तैयार करने के लिये धर्मपरिवर्तन के मर्म को ठीक से समझाने के लिये डॉ.अम्बेडकर ने 31 जुलाई 1936 ई को एक दलित - अछूतों की एक सभा बुलाई जिसका नाम महारपरिषद या महार कान्फ्रेंस रखा था । उस कान्फ्रेंस में बाबा साहब डॉ ० अम्बेडकर
ने अपने हाथ से मराठी में लिखा भाषण पढ़ा था जिसको डा.अम्बेडकर ने दलित - अछूतों के लिये सम्पूर्ण मार्गदर्शन कहा था । ऐसा कोई प्रश्न नहीं छोड़ा जो दलितों के धर्मपरिवर्तन के बारे में किया जा सके , उस भाषण में न उठाया गया हो और उसका समाधान डॉ.अम्बेडकर ने न किया हो । डॉ.अम्बेडकर के उस भाषण में सबसे खास बात यह कही गयी है कि सदियों से जो हम पर अत्याचार सवर्ण हिन्दू करते आ रहे हैं उनका प्रतिकार हम अपने बल पर नहीं कर सकते क्योंकि उनको रोकने की हममें ताकत नहीं है जो कि इन अत्याचारों को रोकने के लिये चाहिये । यह ताकत हमारे अन्दर कैसे आये ? इसके उत्तर में डॉ.अम्बेडकर ने उदाहरण दे कर समझाया हैं।

किसी भी  अन्य समाज के आप जब तक एहसान मन्द नहीं होंगे किसी भी अन्य धर्म में शामिल हुए बिना आपको बाहरी सामर्थ्य प्राप्त नहीं हो सकता है । इसका ही स्पष्ट मतलब यह है कि आप लोगों को धर्मान्तर करके किसी भी अन्य समाज में अंतर्भूत हो जाना चाहिए । सिवाए इसके आपको उस समाज का सामर्थ्य प्राप्त होना सम्भव नहीं है और जब तक आपके पीछे सामर्थ्य नहीं है तब तक आपको और आपकी भावी औलाद को आज की सी भयानक , अमानवीय , अमनुष्यतापूर्ण दरिद्री अवस्था में ही सारी जिन्दगी गुजारनी पड़ेगी । ज्यादतियाँ बेरहमी से बर्दाश्त करनी पड़ेंगी , इसमें कोई संदेह नहीं है । "

बाबा साहब के इन विचारों से यह बात अपने आप साफ़ हो जाती है कि सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए हमें किसी अन्य समाज में अवश्य ही घुल - मिल जाना होगा । यहाँ तक कि हमें उसमें विलीन हो जाना है । बाबा साहब डॉ.अम्बेडकर अपने इसी भाषण में इस्लाम धर्म और मुसलमानों के सामाजिक संगठन की इतनी ज्यादा तारीफ़ की कि श्रोतागण का बहुत बड़ा वर्ग भाषण के बीच में ही खड़े होकर कहने लगा कि बाबा साहब साफ - साफ क्यों नहीं कहते कि हमें मुसलमान बनना है । हम तो मुसलमान बनने के लिए पहले ही से तैयार बैठे हैं । डॉ.अम्बेडकर ने इसके उत्तर में कहा “ जो भी मुझे कहना था , वह कह दिया ..... अब अपना दीपक आप बनो । , इस भाषण की स्पष्ट भावना को समझकर हिन्दू नेता समझ गये कि डॉ.अम्बेडकर इस्लाम धर्म ही ग्रहण करने वाले थे।

वे इस्लामी संघ  को बुनियादी इंसानियत को संसार में सुदृढ़ भाईचारे का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक एंव प्रगतिशील संघ मानते थे । फिर क्यों न हम अपनी मूल समस्या के समाधान के लिए लक्ष्य को प्राप्त करने में पूर्णरूप से सक्षम सामाजिक दासता की बेडियों को काटकर फेंकने के लिए और बाबा साहब डॉ.अम्बेडकर  के सपनों को साकार बनाने के लिए इस्लाम जैसे प्यारे धर्म को अपनाएं जिससे  कि सुख शान्ति एंव सम्रद्धि को प्राप्त कर लें और अपने परलोक को भी सुधार लें। 

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Milan Tomic

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