एक सुल्तान की मौत से जुड़ी है कहावत. अभी दिल्ली दूर हैं..... | HISTORYMEANING

एक सुल्तान की मौत से जुड़ी है कहावत. अभी दिल्ली दूर हैं.....

एक सुल्तान की मौत से जुड़ी हैं कहावत अभी दिल्ली दूर हैं.......

इस कहावत को समझने के लिए इतिहास के पन्ने पलटने पड़ेंगे । इसके ईजाद के पीछे सुल्तान ग़यासुद्दीन तुग़लक़ और  हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के बीच की तकरार भी     है.....
     दक्षिण दिल्ली में महरौली - बदरपुर रोड पर उजाड़ पड़ा      तुग़लक़ाबाद का किला । 1321ई. में इसे ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने    बनवाना शुरू किया था । 

 कभी - कभी कुछ शब्द या मुहावरे खुद में एक इतिहास समेटे होते हैं । जैसे कोई परेशानी आने पर मालवा में लोग कहते हैं , ' अरे भाई , बड़े अड़सट्टे में डाल दिया । ' अब ये अड़सट्टा यूं ही जुबान पर नहीं आ गया लोगों के । असल में मराठों के ज़माने में अड़सठ किस्म के टैक्स होते थे जो अलग - अलग चीजों के लिए तय थे । कौन - सा टैक्स लगा दिया गया , पता ही नहीं चलता था । सो कहा गया कि अड़सट्टे में डाल दिया । ऐसी ही एक कहावत है , ' अभी दिल्ली दूर है ... । ' इसका मतलब है कि अभी तो लक्ष्य दूर है । लेकिन बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं हो जाती । असल में इस मुहावरे का भी एक बड़ा ही रोचक इतिहास है । आज बात इसी ' अभी दिल्ली दूर है ... ' वाले मुहावरे की करते हैं । हुआ यह कि तुगलक वंश का पहला सुल्तान ग़यासुद्दीन तुग़लक़ सन 1320.ई. में दिल्ली के तख्त पर बैठा । वह एक बड़ा सेनानायक था और इसी ताकत व लोकप्रियता के भरोसे उसने दिल्ली के अंतिम ख़िलजी सुल्तान मुबारक़ शाह ख़िलजी से गद्दी छीन ली थी । उसका बड़ा बेटा था जूना खां जो बाद में मुहम्मद बिन तुग़लक़ के नाम से 1325 ई . में दिल्ली का सुल्तान बना । अब मुहम्मद बिन तुग़लक़ का नाम तो वे लोग भी जानते होंगे , जिन्होंने कभी दिल्ली सल्तनत का इतिहास नहीं पढ़ा । उसी जमाने में दिल्ली में एक बहुत मशहूर सूफी संत हुए हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया । यह ध्यान रखें कि सूफी संत बहुत उदार होते थे  वे हिंदुओं और मुसलमानों दोनों में काफी लोकप्रिय थे । 

हम सभी जानते हैं कि दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन औलिया , अजमेर के ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती , फतेहपुर सीकरी के शेख़ सलीम चिश्ती , हिंदुओं और आम मुसलमानों में आज भी कितने लोकप्रिय हैं । निजा़मुद्दीन औलिया तब दिल्ली के पास रहते थे । उन दिनों ग़यासुद्दीन तुग़लक़ दिल्ली से सेना सहित बंगाल के अभियान में गया तो उसे खबर मिली कि उसका बेटा जूना खां शक्तिशाली बनने के लिए अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ा रहा है । इसके अलावा वह हजरत निजामुद्दीन औलिया का शागिर्द भी बन गया है । ग़यासुद्दीन के औलिया से पहले से ही रिश्ते ठीक नहीं थे । इस बीच , औलिया ने भी भविष्यवाणी कर दी कि शाहजा़दा जूना खां जल्द ही दिल्ली का सुल्तान बनेगा । इससे परेशान सुल्तान दिल्ली रवाना हो गया । दिल्ली पहुंचने के पहले ही उसने गुस्से में हज़रत निज़ामुद्दीन को यह धमकी भी दे दी कि वह दिल्ली पहुंचते ही उसके ख़िलाफ सख्त़ कार्रवाई करेगा । इस पर औलिया ने जवाब दिया- हनोज दिल्ली दूर अस्त । यानी ' अभी तो दिल्ली दूर है । आगे कहानी यूं बढ़ती है कि शाहज़ादा जूना खां ने अपने पिता गयासुद्दीन का स्वागत करने के लिए दिल्ली के कुछ मील पहले अफगानपुर में लकड़ी का विशाल श़ामियाना खड़ा करवाया । जूना खां ने इस भव्य श़़ामियाने में सुल्तान का स्वागत किया । भोजन के बाद उसने सुल्तान से बंगाल से लाए हाथी देखने की इच्छा ज़ाहिर की । इस पर सुल्तान ने बंगाल से लाए गए हाथियों की परेड करवाई ..

      ग़यासुद्दीन तुुग़लक़ का मक़बरा

जैसे ही श़ामियाने के एक स्थान से हाथियों का संपर्क हुआ , वैसे ही लकड़ी का वह विशाल श़ामियाना धराशायी हो गया । जब मलबा हटाया गया तो उसमें ग़यासुद्दीन और उसके छोटे बेटे महमूद की लाशें मिलीं । यानी सुल्तान कभी दिल्ली पहुंच ही नहीं पाया । इसी से कहावत बनी कि ' अभी दिल्ली दूर है । यह सारा विवरण उस समय के इतिहासकार ज़ियाउद्दीन बरनी ने दिया है । इस घटना के बारे में उसने फारसी में लिखी अपनी किताब में जिक्र किया है- ' बला - ए सायका अज़ आसमानी जमीं नाजिल शुद ' जिसका हिंदी में अर्थ होता है - ' आसमान से जमीन पर बिजली गिरी । ' अब इतिहासकार इसके दो तरह से अर्थ लगाते हैं । डॉ . ईश्वरीप्रसाद का मत है कि यह शाहजादे द्वारा सावधानी से रचे गए षड़यंत्र का परिणाम था । यह शामियाना इस प्रकार बनवाया गया था कि हाथियों के द्वारा एक खास जगह छुए जाने भर से वह गिर सकता था । विदेशी यात्री इब्नबतूता भी , जिसे घटना की जानकारी शेख रुकनुद्दीन नाम के व्यक्ति ने दी थी , जूना खां को दोषी ठहराता है । हालांकि इसके विपरीत मेहदी हसन साहब का कहना है कि शामियाना खुद गिर गया और शाहजादे का इसमें कोई हाथ नहीं था । ये इतिहास है ' अभी दिल्ली दूर है ' का । जनाब मीर तकी मीर भी इस जुमले का इस्तेमाल एक शेर में करते हैं - शिकवा - ए आबला अभी से ' मीर ' , है प्यारे हनोज़ दिल्ली दूर । इसका मतलब है कि अभी से आप पैर में छाले ( आबला ) पड़ने की शिकायत करने लगे हैं जनाब , अभी तो प्यारे दिल्ली दूर है ।
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Milan Tomic

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