Battle of Badr
Yaum e Furqan
यौम ए फ़ुरक़ान का दिन जब हक़ और बातिल के दरमियान वाज़े तफरीक़ हो गई।
Battle of Badr - Yaum e Furqan |
ग़ज़वा ए बद्र जिसे यौम ए फ़ुरक़ान के नाम से भी जाना जाता हैं यह लड़ाई ( 17 रमज़ान व 2 हिजरी ) में लड़ी गई
इसमें मुसलमानों की तादाद ( 313 ) के लगभग बताई जाती हैं और क़ुरैश की तादाद ( 1000 ) के लगभग बताई जाती हैं
जब फौजे बद्र के मैदान में आमने सामने थी तो अल्लाह के रसूल अलैहिस्सलाम ने सिपाहियों को ताक़ीद की और उनकी हौसला अफ़ज़ाई की और फिर अपने परवरदिग़ार से मदद का वादा पूरा करने की दुआ मांगने लगे
आपकी दुआ यह थी -
‘ ऐ अल्लाह ! तूने मुझसे जो वादा किया है , उसे पूरा फ़रमा दे । ऐ अल्लाह ! में तुझसे तेरा वचन और तेरे वादे का सवाल कर रहा हूं । '
लड़ाई की शुरुआत
इस लड़ाई की शुरुआत कुरैश के तीन सबसे बेहतर घुड़सवार से हुई जो आगे निकले और जो कि सब के सब एक ही ख़ानदान के थे , एक उत्बा , दूसरा उसका भाई शैबा , जो दोनों रबीआ के बेटे थे । और तीसरा वलीद जो उत्बा का बेटा था । उन्होंने अपनी पंक्ति से आगे बढ़कर लड़ने को ललकारा मुक़ाबले के लिए अंसार के तीन जवान निकले - एक औफ़ दूसरे मुअव्विज़ ये दोनों हारिस के बेटे थे और इनकी मां का नाम अफ़रा था , तीसरे अब्दुल्लाह बिन रुवाहा ।कुरैश ने
कहा तुम कौन लोग हो ? उन्होंने कहा , अंसार की एक जमाअत हैं । इस पर क़ुरैश ने ने कहा , मुक़ाबले में आने वाले आप शरीफ़ लोग हैं , लेकिन हमें आपसे कोई सरोकार नहीं । हम तो अपनी क़ौम के बंदे चाहते हैं । फिर आवाज़ लगाने वाले ने आवाज़ लगाई , मुहम्मद इब्न अब्दुल्लाह (ﷺ ) ! हमारे पास हमारी क़ौम के बराबर के लोगों को भेजो ।
अल्लाह के रसूल अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया , उबैदा बिन हारिस उठो , हमज़ा उठिए , अली उठो
जब ये लोग उठे और कुरैश के लोगों के क़रीब पहुंचे , तो उन्होंने पूछा , आप कौन लोग हैं ? उन्होंने अपना परिचय कराया । क़ुरैश ने कहा , हां , आप लोग सही मुक़ाबले के हैं । इसके बाद लड़ाई शुरू हुई । मुक़ाबला हज़रत उबैदा रज़ि ने , जो सब में ज़्यादा उम्र वाले थे , उत्बा बिन रबीआ से किया , हज़रत हमज़ा ने शैबा से और हज़रत अली रजि ० न वलीद से हज़रत हमज़ा रज़ि ० और हज़रत अली रजि ० ने तो अपने अपने मुक़ाबले वालों को झट से मार दिया , लेकिन हज़रत उबैदा रज़ि और उनके मुक़ाबले के बीच एक - एक वार का तबादला हुआ और दोनों में से हर एक ने दूसरे को गहरा घाव लगाया । इतने में हज़रत अली रज़ि और हज़रत हमज़ा रजि ० अपने - अपने शिकार से फ़ारिग़ होकर आ गए , आते ही उत्बा पर टूट पड़े , उसका काम तमाम कर दिया और हज़रत उवैदा रज़ि को उठा लाय। उनका पांव कट गया था और आवाज़ बन्द हो गई थी , जो बराबर बन्द रही , यहां तक कि लड़ाई के चौथे या पांचवें दिन जब मुसलमान मदीना वापस होते हुए सफ़रा की घाटी से गुज़र रहे थे ,तो उनका इंतिक़ाल हो गया ।
आम झड़प की शुरुआत
जब घमासान लड़ाई शुरू हो गई , बड़े ज़ोर का रन पड़ा और लड़ाई | पूरी तरह भड़क उठी ,
तो आपने यह दुआ फ़रमाई - ' ऐ अल्लाह ! अगर आज यह गिरोह हलाक हो गया तो तेरी इबादत न की जाएगी । ऐ अल्लाह ! अगर तू चाहे तो आज के बाद तेरी इबादत कभी न की जाए । ' आपने खूब गिड़गिड़ा कर दुआ की , यहां तक कि दोनों कंधों से चादर गिर गई । हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ि ने चादर ठीक की और अर्ज़ किया
ऐ अल्लाह के रसूल अलैहिस्सलाम ! बस फ़रमाइए । आपने अपने रब से बहुत गिड़गिड़ा कर दुआ फ़रमा ली । ' उधर अल्लाह ने फ़रिश्तों को हुकुम दिया कि - ' मैं तुम्हारे साथ हूं , तुम ईमान वालों के क़दम जमाओ , मैं काफ़िरों के दिलों में रौब डाल दूंगा ।
और अल्लाह के रसूल अलैहिस्सलाम के पास वहि भेजी कि
मैं एक हज़ार फ़रिश्तों को तुम्हारी मदद के लिए भेज रहां हूँ
( क़ुरआन : 8-9 )
फ़रिश्तों का जंग में शरीक़ होना
इसके बाद अल्लाह के रसूल अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया :
अबूबक्र खुश हो जाओ । यह जिब्रील अलैहिस्सलाम हैं , गर्द - धूल में अटे हुए ।
(बुख़ारी 3995)
इब्ने इस्हाक़ की रिवायत में यह है कि आपने फ़रमाया , अबू बक्र ! खुश हो जाओ , हमारे पास अल्लाह की मदद आ गई । यह जिब्रील अलैहिस्सलाम हैं अपने घोड़े की लगाम थामे और उसके आगे - आगे चलते हुए आ रहे हैं और धूल - गर्द में अटे हुए हैं ।
इसके बाद अल्लाह के रसूल अलैहिस्सलाम छप्पर के दरवाज़े से बाहर तशरीफ़ लाए
आप पूरे जोश के साथ आगे बढ़ रहे थे और फ़रमाते जा रहे थे
बहुत जल्द यह जत्था हार जाएगा और पीठ फेर कर भागते नज़र आएंगे ।
(क़ुरआन : 54 - 45)
इसके बाद आपने एक मुट्ठी कंकरीली मिट्टी ली और कुरैश की ओर रुख करके फरमाया ' चेहरे बिगड़ जाएं ' और साथ ही मिट्टी उनके चेहरों की ओर फेंक दी , फिर मुश्रिकों में से कोई भी न था , जिसकी दोनों आंखों , नथनो और में उस एक मुट्ठी से उन्हें कुछ हो गया ।
इसी के बारे में अल्लाह का इर्शाद है
जब आपने फेंका , तो वास्तव में आपने नहीं फेंका , बल्कि अल्लाह ने फेंका । '
( क़ुरआन : 8 : 17 )
आख़िर में मुसलमानों की फ़तह हुई और इसमें 14 सहाबी शहीद हुए और क़ुरैश के 70 लोग मारे गये इसमें क़ुरैश के कुछ सरदार भी थे और 70 के क़रीब ही क़ुरैश के लोगों को कैदी बना लिये गए और बाकी भाग कर मक्का वापस चले गये।
अल्लाह के रसूल अलैहिस्सलाम ने बद्र के काफ़िरों को ये फ़रमाया के मैं जो उन से कहाँ करता था अब उनको मालूम हुआ होगा के वो सच्च हैं।
(बुखारी 1371)
फिर अल्लाह ने जंग के नतीजे के बारे में फ़रमाया
तुम्हारे लिये उन दो गरोहों में इबरत की एक निशानी थी, जिन्होंने ( बद्र ) में एक-दूसरे से जंग की। एक गरोह अल्लाह की राह में लड़ रहा था और दूसरा गरोह हक़ का इनकारी था
(क़ुरआन : 3 , 13)
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