वो मदीना शहर के 72 दिन | HISTORYMEANING

वो मदीना शहर के 72 दिन

वो मदीना शहर के 72 दिन....


 मुहाफ़िज़ ए मदीना 'उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा 


उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा 



येे मुजाविराने क़ाबा, इन्हें क्या हुआ ख़ुदाया तेरे दोस्तों से नफ़रत तेरे दुश्मनों से यारी

(सरफराज़ बज़्मी साहब) 




मदीना अरब का एक मुक़द्दस शहर है जो के पहली जंग ए अज़ीम के दौरान एक तवील महासरे से गुज़रा, उस वक़्त मदीना सल्तनत उस्मानिया का हिस्सा था। इस वक़्त सल्तनत उस्मानिया ने मरक़ज़ी ताक़तो का साथ दिया था। शरीफ़ हुसैन मक्का ने सल्तनत उस्मानिया से ग़द्दारी की और ख़लीफ़ा के ख़िलाफ़ बग़ावत का झंडा बुलंद कर दिया, जिसमे लारेँस आफ़ अरेबिया का साथ था। शरीफ़ मक्का ने मक्का पर क़ब्ज़ा करने के बाद मदीना का महासरा किया। मदीना का महासरा तारीख़ के तवील महासरे मे से एक था जो के जंग के बाद भी जारी रहा। उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा ने मदीना का दफ़आ किया , उनकी जुर्रत और हौसले की वजह से उनके चाहने वाले उन्हे शेर ए सेहरा कहते हैं, ये महासरा 2 साल और 7 महीना तक जारी रहा।

उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा या की पैदाईश 1868 मे बुलग़ारिया मे हुआ था जो सल्तनत उस्मानिया का हिस्सा हुआ करता था, 1877 मे हुए तुर्क-रशियन जंग के वजह से इनका पुरा ख़ानदान क़ुस्तुन्तुनिया मे जा बसा, यहीँ उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा ने 1888 मे उस्मानी वार अकेडमी से ख़ुद को जोड़ा और यहीं से ग्रेडुएशन किया, उनकी पहली पोस्टिंग चौथी सेना मे पुरवी सरहद पर हुई जो के अरमानिया से लगती थी, 1908 मे उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा वापस क़ुस्तुन्तुनिया आ गए और पहली फ़ौजी दस्ते का हिस्सा बने. 1911–12 मे लीबिया भेज दिये गए फिर बालकन जंग मे आप 31वें डिवीज़न के कमांडर के हैसियत से गैलीपौली मे रहे और आपकी ही फ़ौजी युनिट ने बुलग़ारिया से 'एडरिन' नाम के तारीख़ी शहर को दुबारा छीना और इस शहर मे उस्मानी वज़ीर ए जंग अनवर पाशा के साथ दाख़िल हुए.

1914 मे 12वीँ बटालियन के कमांडर के हैसियत से मोसुल मे रहे, फिर प्रमोशन दे कर मेजर जनरल बना दिये गए और 12 नवम्बर 1914 को चौथी फ़ौज के डिप्टी कमांडर बना कर अलप्पो भेज दिये गए.

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 23 मई 1916 को अहमद जमाल पाशा के हुक्म पर उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा हेजाज़ के लिए निकल पड़े जहाँ जा कर उन्हे मदीना की हिफ़ाज़त करनी थी, 17 जुलाई 1916 को हेजाज़ इक्सपिडेशनरी फौज के कमांडर मुक़रर्र कर दिये गए...

10 जुन 1916 को शरीफ़ मक्का जिसने सल्तनत उस्मानिया से ग़द्दारी की और ख़लीफ़ा के ख़िलाफ़ बग़ावत का झंडा बुलंद कर दिया था ने अपने बेटे फ़ैसल अब्दुल्लाह और अली की क़ियादत मे ब्रिटेन की मदद से 30 हज़ार सिपाही के साथ पुरी तरह मदिना को घेर लिया पर उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा ज़रा भी न घबराए और उन्होने उनसे अपने 3000 वफ़ादार सिपाहीयों को साथ लोहा लेना शुरु किया.

उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा ने ना सिर्फ़ मदीना मुनव्वरा की हिफ़ाज़त की बल्कि हिजाज़ रेलवे ट्रैक की हिफ़ाज़त भी की जिसपर लारेँस आफ़ अरेबिया की क़ियादत मे लगादार हमला किये जा रहे थे. सिर्फ़ 1917 मे 130 से अधिक बड़े हमले किये गए और हज़ारो की तादाद मे 1918 मे जिसमे सिर्फ़ 300 बम अप्रील 30, 1918 को छोडे गए. पर उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा नामी इस मुजाहिद ने अपने जो वक़्त का सबसे बड़ा अशिक ए रसुल (सल्ला) था  कभी पीछे मुड़ कर नही देखा. नबी(स) के शहर मदीना पर हो रहे हमले का मुंह तोड़ जवाब देते रहे यहां तक के 30 अक्टूबर 1918 को जब इस बीच शरीफ़ मक्का के लोगो ने 12 दिन तक मदीना को जम कर लुटा और उन 4850 घरों को ज़बरदस्ती खोल कर लुटा गया जिन्हे ओमर फ़ख़रुद्दीन पाशा ने सील कर बंद किया था.
 का समझौता हुआ तब भी उन्होने लोहा लेना नही छोड़ा.

शरीफ़ मक्का और उसके लोगो ने सोचा की ओमर फ़ख़रुद्दीन पाशा अब हथियार डाल देगा पर एैसा कुछ नही हुआ उलटे उन्होने उस्मानियो और ब्रिटेन के बीच हुए Armistice of Mudros के समझौते को ही मानने से इनकार कर दिया.

तुर्की के मारुफ़ मुसन्निफ़ "फ़रिदीन कंदमेर" ने अपने आंखो देखा हाल हाल कुछ इस तरह लिखा है जो उस वक़्त उस्मानी रेड क्रिसेंट वालेंटियर की हैसयत से मदीना मे मुक़ीम थे, वो लिखते हैं की मौसम ए बहारा के जुमा के नमाज़ के बाद ओमर फ़ख़रुद्दीन पाशा कुछ इस तरह सिपाहीयों को ख़ेताब करते हैं :-

सिपाहीयों !!
मैं नबी करीम मुहम्मद सलल्लाहो अलैह ए वसल्लम के नाम पर तुमसे अपील करता हूँ, और ये हुक्म देता हूँ कि दुश्मन की ताक़त की परवाह किये बग़ैर अपनी अाख़री गोली- अाख़री सांस तक नबी करीम मुहम्मद सलल्लाहो अलैह ए वसल्लम और उनके शहर की रक्षा करो.
अल्लाह की मदद और नबी मुहम्मद सलल्लाहो अलैह ए वसल्लम की दुआएं हमारे साथ हों.

"जाबाज़ उस्मानी फ़ौज के अफ़सरों !!
हे मुहम्मद (सल्ला) के मानने वालों, आगे आओ और अल्लाह और उसके रसूल से वादा करो, कि अपने जानों की क़ुरबानी देकर तुम अपने दीन और मज़हब का मान रखोगे.

अगस्त 1918 मे शरीफ़ हुसैन मक्का ने उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा को हथियार डालने को कहा तो उन्होने कुछ इन लफ़्ज़ो मे जवाब दिया :-

अल्लाह के नाम से, जो सर्वशक्तिमान है.
"जनरल, फ़ख़रुद्दीन, पाक शहर मदीना के रक्षक. नबी करीम मुहम्मद सलल्लाहो अलैह ए वसल्लम का ग़ुलाम."


" अब मैं अपने सुप्रीम कमांडर, अपने नबी करीम मुहम्मद सलल्लाहो अलैह ए वसल्लम के संरक्षण में हूँ. अब मैं अपने गढ़ को मज़बूत करने, मदीना की सड़कों और चौराहों को मज़बूत बनाने में लगा हूँ. मुझे बेकार चीज़ों से तंग मत करो.

उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा ने उस्मानी वज़ीर ए जंग के हुक्म को भी मानने से इनकार कर दिया जिसमे उन्हे हथियार डालने का हुक्म दिया गया था.

उस्मानी हुकुमत इनके इस रवइये से काफ़ी नाराज़ हो गई और सुलतान मेहमद VI ने उन्हे उनके ओहदे से हटा दिया, पर उन्होने ये भी मानने से भी इनकार कर दिया और सल्तनत उस्मानिया के झंडे को लगातार उठाए रखा यहां तक के जंग ख़्तम होने के 72 दिन के बाद तक. जब के 30 अक्टुबर 1918 को हुए Armistice of Mudros के समझौते के बाद सबसे नज़दीकी उस्मानी फ़ौज की युनिट मदीना से 1300 किमी दुर थी.

चुंकी सपलाई बंद हो चुकी थी, खाने पीने की कमी के वजह कर उस्मानी फ़ौज को फाक़े से रहना पड़ रहा था आख़िर मे भुख और अमदाद की कमी को वजह कर 10 जनवरी 1919 को उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा ने ख़ुद को अपने ही लोगो से गिरफ़्तार करवा कर बीर दरविश मे शरीफ़ मक्का के बेटे अबदुल्लाह के सामने पेश कर दिया.

इस हादसे के बाद ही शरीफ़ मक्का का बेटा अबदुल्लाह 13 जनवरी 1919 को मदीना मे दाख़िल हुआ और पीछे से 2 फ़रवरी 1919 को शरीफ़ मक्का का दुसरा बेटा अली मदीना मे दाख़िल हुआ.


फिर उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा को उनके सिपाहियों के साथ गिरफ़्तार कर मिस्त्र के फ़ौजी अड्डे मे लाया गया जिसमे 519 अफ़सर थे और 7545 सिपाही थे, इनमे कई बिमारी से मर गए और कईयो को उनके इलाक़े मे भेज दिया गया और फिर ओमर फ़ख़रुद्दीन पाशा को मालटा की जेलों मे भेज दिया गया.

एक क़ैदी की हैसियत से मालटा मे 2 सालो तक रहे फिर 1921 मे रिहा हो कर तुर्क फ़ौज का हिस्सा बने जिसका सरबराह मुस्तफ़ा कमाल पाशा था.

फिर 1922 से 1926 तक काबुल अफ़ग़ानिस्तान मे तुर्की के राजदुत की हैसयत से अपनी सेवाएं दी फिर 1936 को प्रामोशन देकर लेफ़टिनेंट जनरल बना दिये गए और फिर इसी ओहदे के साथ फ़ौज से रिटाएर हो गए.

22 नवम्बर 1948 एक सफ़र के दौरान आए दिल के दौरे ने दुनिया से हमोशा के लिए उमर फ़ख़रुद्दीन पाशा को रुख़सत हुऐ . इन्हे एसयान सेमेटरी इंस्तांबुल मे दफ़नाया गया.


 
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Milan Tomic

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