अलाउद्दीन ख़िलजी की मंडी बाज़ार व्यवस्था
तेरहवीं सदी की शुरुआत में अलाउद्दीन ख़िलजी के शासनकाल के दौरान चंगेज खां और हलाकू खां के वंशजों अमीर बेग , तरगी , तरतक , कुबक और इकबालमन्दा ने एक के बाद एक दिल्ली सल्तनत पर कई आक्रमण किए माना जाता है कि उस समय अगर दिल्ली के तख्त पर अलाउद्दीन ख़िलजी ना होता तो हिन्दुस्तान का वही हश्र होता जो मध्य एशिया में अन्य कई देशों का हुआ यानी भारी विनाश
मंडी बाज़ार व्यवस्था |
मंडी बाज़ार की व्यवस्था
गल्ला मंडी में भाव की स्थिरता अलाउद्दीन की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी जब तक वह जीवित रहा , इन मूल्यों में तनिक भी वृद्धि नहीं हुई कीमतें कम या नीचे कर दी गई थीं । बरनी के मत से सहमत होना कठिन है कि ये उसके पूर्ववर्ती और परवर्ती शासकों के काल में विद्यमान कीमतों की तुलना में सबसे नीचे थीं । बल्बन के समय गेहूँ अधिक सस्ता था और फिरोज़शाह तुग़लुक के समय भी मूल्य अलाउद्दीन के समय के मूल्य - स्तर पर आ गए थे । इब्राहीम लोदी के समय कीमतें लगभग उतनी ही थीं । अलाउद्दीन के समय में कीमतों का सस्तापन उतने महत्व की बात नहीं है जितना कि बाजार में निश्चित कीमतों की स्थिरता है । इसे उसके राज्य की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि कहा जा सकता है । कीमतें निश्चित करके सुल्तान ने अनाज का बाजार और सरकारी अनाज - विक्रयालय स्थापित किए । यहाँ से जनता व दुकानदार अन्न आदि खरीद सकते थे । अनाज - बाजार में दो प्रकार के व्यापारी थे । प्रथम वे जिनकी दिल्ली में स्थायी दुकाने थीं । दूसरे काफिले वाले व्यापारी थे जो नगर में अनाज लाते थे और उसे दुकानदारों तथा जनता को बेचते थे । अलाउद्दीन के नवीन आदेशों के परिणामस्वरूप व्यापारियों को अधिक मुनाफाखोरी का अवसर नहीं मिलता था । उत्पादन मूल्य उत्पादकों की लागत से अधिक मुनाफाखोरी का अवसर नहीं मिलता था ।
शहना व्यवस्था
लोगो को बाजार के शहना अफ़सर के पास अपने नाम दर्ज कराने पड़ते थे । अनाज - व्यापार के शहना मलिक क़बूल ने घुमक्कड़ व्यापारियों (कारवाँ या बंजारा ) के नेताओं को पकड़ लिया और उन्हें दिल्ली के बाजार में नियमित रूप से अनाज लाकर निश्चित दरों पर बेचने के लिए राजी किया । उन्हें शहना के प्रत्यक्ष नियंत्रण में यमुना नदी के तट के ग्रामों में अपने परिवार सहित बसने का आदेश दिया गया । सामान्य समय में इन व्यापारियों ने बाजार में पूरा अनाज लाने के करारनामों पर सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से हस्ताक्षर किए । इस काल में सरकारी गोदाम छूने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी क्योंकि बाजार में अनाज मुक्त रूप से उपलब्ध था । अलाउद्दीन ने घुमक्कड़ व्यापारियों के हितों का ध्यान रखते हुए उन्हें आसानी से अनाज उपलब्ध कराने के लिए भी कदम उठाए । दोआब और दिल्ली के आसपास के प्रदेशों के समस्त दंडाधिकारियों तथा राजस्व इकट्ठा करने वाले अधिकारियों (शहनागान और मुतसरिफान ) को आदेश दिया कि वे सुल्तान को इस आशय का लिखित करार दें कि वे कृषकों से उनकी उपज का 50 प्रतिशत भू - राजस्व वसूल करतें हैं। इस प्रकार सारा उपलब्ध अनाज बाजार में आता था और उसे भंडार गृहों में रखा जाता था। सुल्तान ने काला बाज़ारी( मुनाफाखोरी) पर पूर्ण रोक लगा दी।
अन्न - भंडार व्यवस्था
मौसम के आकस्मिक परिवर्तनों का सामना करने के लिए अलाउद्दीन ने शासकीय अन्न - भंडार बनाए । ये पूरी तरह भरे रहते थे । बरनी कहता है कि शायद ही कोई ऐसा मोहल्ला था जहाँ खाद्यान्नों को भरे दो या तीन सरकारी भंडार नहीं थे । इन गोदामों का अनाज केवल प्रातकालीन स्थितियों में निकाला जाता था । वर्षा की कमी या अन्य किसी कारण से यदि नष्ट हो जाए या यातायात के किसी संकट के कारण राजधानी में अनाज न आ पाए तो इन गोदामों से अनाज निकालकर घुमक्कड़ व्यापारियों को अनाज मंडी में बेचने के लिए दिया जाता था । ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि अलाउद्दीन ने राशन - व्यवस्था भी लागू की थी । अकाल के समय प्रत्येक घर को आधा मन अनाज प्रतिदिन दिया जाता था । नगर के संपन्न व्यक्तियों को उनकी आवश्यकता की पूर्ति के लिए निश्चित मात्रा में अनाज दिया जाता था यह व्यवस्था केवल अकाल के समय लागू की जाती थी अन्यथा अनुकूल मौसम में लोग इच्छानुसार अनाज खरीद सकते थे । बरनी लिखता है कि अनावृष्टि के समय दरिद्र और असहाय लोग बाजारों में एकत्र हो जाते थे . और कभी - कभी कुचलकर मर भी जाते थे । किंतु ऐसा होने पर अधिकारी शहना को दंड दिया जाता था । इस प्रकार राशन की पद्धति अलाउद्दीन की नई सूझ थी और बरनी कहता है कि वर्ण की अनियमितता होने पर भी दिल्ली में अकाल नहीं पड़ा । किंतु कहीं जगह राशन की मोहर की व्यवस्था नहीं थी । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जो व्यक्ति बाजार जाता था उसे निर्धारित मात्रा में अनाज मिलता था ।
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